scriptAhilyabai: ऐसा क्या हुआ था कि देवी अहिल्याबाई ने सुना दी थी बेटे को मौत की सजा | Untold Story of Queen Ahilyabai Holkar Jayanti 2024 life story real photo historical facts | Patrika News
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Ahilyabai: ऐसा क्या हुआ था कि देवी अहिल्याबाई ने सुना दी थी बेटे को मौत की सजा

Ahilyabai Holkar Jayanti 2024: मालवा की महारानी देवी अहिल्याबाई होलकर (Punyashlok Ahilya Bai) का जन्म 31 मई 1725 को हुआ था। इतिहास में दर्ज देवी अहिल्याबाई के जीवन का ये किस्सा बताता है वो इंसाफ की देवी थीं, उनका आदेश भगवान शिव का आदेश माना जाता था.

इंदौरMay 31, 2024 / 10:34 am

Sanjana Kumar

Devi Ahilyabai

Devi Ahilyabai Holkar

Queen Ahilyabai Holkar: मालवा की महारानी देवी अहिल्याबाई होलकर (Punyashlok Ahilya Bai) न्याय की ऐसी मूर्ति कि अपने बेटे को भी सजा-ए-मौत का फरमान सुनाने से भी नहीं हिचकीं। एक घटना का पता चलते ही उन्होंने अपने बेटे के हाथ पैर बांधकर रथ के नीचे कुचलवाने का आदेश दे दिया था। लेकिन कोई सारथी जब रथ चलाने को तैयार नहीं हुआ तो महारानी देवी अहिल्याबाई खुद सारथी बन रथ पर चढ़ गईं। फिर जो हुआ वो जानकर आपकी आंखें भर आएंगी…

क्यों सुनाया था बेटे को मौत का फरमान

एक बार जब अहिल्याबाई के बेटे मालोजीराव अपने रथ से सवार होकर राजबाड़ा के पास से गुजर रहे थे। उसी दौरान मार्ग के किनारे गाय का छोटा-सा बछड़ा भी खड़ा था। जैसे ही मालोराव का रथ वहां से गुजरा अचानक कूदता-फांदता बछड़ा रथ की चपेट में आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। थोड़ी देर में तड़प-तड़प कर उसकी वहीं मौत हो गई। इस घटना को नजरअंदाज कर मालोजीराव आगे बढ़ गए। इसके बाद गाय अपने बछड़े की मौत पर वहीं बैठ गई। वो अपने बछड़े को नहीं छोड़ रही थी।

जब किसी ने डरते हुए लिया अहिल्याबाई के बेटे का नाम

कुछ ही देर बाद वहां से अहिल्याबाई भी वहां से गुजर रही थी। तभी उन्होंने बछड़े के पास बैठी हुई एक गाय को देखा, तो रुक गईं। उन्हें जानकारी दी गई। कैसे मौत हुई कोई बताने को तैयार नहीं था। अंततः किसी ने डरते हुए उन्हें बताया कि मालोजी के रथ की चपेट में बछड़ा मर गया। यह घटनाक्रम जानने के बाद अहिल्या ने दरबार में मालोजी की धर्मपत्नी मेनाबाई को बुलाकर पूछा कि यदि कोई व्यक्ति किसी की मां के सामने उसके बेटे का कत्ल कर दे तो उसे क्या दंड देना चाहिए? मेनाबाई ने तुरंत जवाब दिया कि उसे मृत्युदंड देना चाहिए।
इसके बाद अहिल्याबाई ने आदेश दिया कि उनके बेटे मालोजीराव के हाथ-पैर बांध दिए जाएं और उन्हें उसी प्रकार से रथ से कुचलकर मृत्यु दंड दिया जाए, जिस प्रकार गाय के बछड़े की मौत हुई थी।

बेटे की जान लेने खुद रथ पर चढ़ गई थीं देवी अहिल्याबाई

इस आदेश के बाद कोई भी व्यक्ति उस रथ का सारथी बनने को तैयार नहीं था। जब कोई भी उस रथ की लगाम नहीं थाम रहा था तब अहिल्याबाई खुद आकर रथ पर बैठ गईं। वो जब रथ आगे बढ़ा रही थी, तब एक ऐसी घटना हुई, जिसने सभी को हैरान कर दिया। वही गाय रथ के सामने आकर खड़ी हो गई थी। जब अहिल्याबाई के आदेश के बाद उस गाय को हटाया जाता तो वो बार-बार रथ के सामने आकर खड़ी हो जाती। यह देश दरबारी मंत्रियों ने महारानी से आग्रह किया कि यह गाय भी नहीं चाहती है कि किसी और मां के बेटे के साथ ऐसी घटना हो। इसलिए यह गाय भी दया करने की मांग कर रही है। गाय अपनी जगह पर रही और रथ वहीं पर अड़ा रहा। राजबाड़ा के पास जिस स्थान पर यह घटना हुई थी, उस जगह को आज सभी लोग ‘आड़ा बाजार’ के नाम से जानते है।

शिवभक्त अहिल्याबाई का आदेश माना जाता था भगवान शिव का आदेश

होलकर राज्य की निशानी और देवी अहिल्याबाई के शासन में बनवाई गईं चांदी की दुर्लभ मुहरें अब भी मल्हार मार्तंड मंदिर के गर्भगृह में रखी हुई हैं। इन मोहरों का उपयोग अहिल्या के समय में होता था। अहिल्या के आदेश देने के बाद मुहर लगाई जाती थी, आदेश पत्र शिव का आदेश ही माना जाता था। छोटी-बड़ी चार तरह की मुहरें अब भी मंदिर में सुरक्षित हैं।
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इसलिए कहलाईं लोकमाता

अहिल्या (1737 से 1795) ने मालवा की रानी के रूप में 28 साल तक शासन किया। अहिल्याबाई के शासनकाल में सम्पूर्ण प्रजा सुख और शान्ति तथा समृद्धि से खुशहाल थी। भरपूर थी, इसलिए लोग उन्हें लोकमाता कहते थे। उन्होंने हमेशा अपने राज्य और अपने लोगों को आगे बढ़ने का हौंसला दिया.ओंकारेश्वर पास होने के कारण और नर्मदा के प्रति श्रद्धा होने कारण उन्होंने महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया था।

महाराष्ट्र से है खास नाता

अहिल्याबाई होल्कर का जन्म वर्ष 31 मई 1725 को महाराष्ट्र राज्य के चौंढी नामक गांव जामखेड़, अहमदनगर में हुआ था। वह एक सामान्य से किसान की बेटी थीं। उनके पिता मान्कोजी शिन्दे एक सामान्य किसान थे। सादगी और घनिष्ठता के साथ जीवन व्यतीत करने वाले मनकोजी की अहिल्याबाई अपने पिता कि इकलौती संतान थीं। अहिल्याबाई बचपन में सीधी-सादी और सरल ग्रामीण कन्या थीं। अहिल्याबाई होलकर भगवान शिव की भक्त थीं और हर दिन शिव मंदिर में पूजन करने जाती थीं।

ये भी जानें

  • इतिहासकार ई. मार्सडेन के अनुसार साधारण शिक्षित अहिल्याबाई 10 वर्ष की अल्पायु में ही मालवा में होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खण्डेराव के साथ परिणय सूत्र में बंध गई थीं।
  • अपनी कर्तव्यनिष्ठा से उन्होंने सास-ससुर, पति और अन्य संबंधियों के दिल में जगह बना ली थी।
  • अहिल्याबाई के दो संतान थीं एक पुत्र और एक पुत्री।
  • 29 वर्ष की आयु में ही अहिल्याबाई होलकर के पति का देहांत हो गया।
  • सन् 1766 ई. में वीरवर ससुर मल्हारराव भी चल बसे।
  • मल्हारराव के जाने के बाद अहिल्याबाई होल्कर शासन की बागडोर संभालनी पड़ी।
  • उस समय देखते ही देखते पुत्र मालेराव, दोहित्र नत्थू, दामाद फणसे, पुत्री मुक्ता भी माँ को अकेला ही छोड़ चल बसे।
  • जीवन में इतने दुख झेलकर भी महारानी अहिल्याबाई होलकर ने प्रजा हित के लिए आगे बढ़ीं और सफल दायित्वपूर्ण राजशाही का संचालन करते हुए 13 अगस्त, 1795 को दुनिया को अलविदा कह गईं।
  • नर्मदा तट पर स्थित महेश्वर के किले में उन्होंने अंतिम सांस ली।
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