विभागीय सूत्रों के अनुसार, बांध फूटने के बाद जो प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार हुई है, उसमें स्थानीय प्रशासन, जल संसाधन विभाग के अफसरों की बड़ी खामी सामने आई है। विभाग के आला अफसरों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, धार जल संसाधन विभाग और प्रशासन ने बांध में पानी भरने का निर्णय लेने से पहले इसकी तकनीकी जांच नहीं की। वहीं आला अफसरों को इस निर्णय की सूचना तक नहीं दी। जब बांध में बहाव शुरू हुआ तब भी स्थानीय अफसर चुपचाप देखते रहे। 11 अगस्त को सोशल मीडिया पर जानकारी मिली तब हलचल शुरू हुई। कंपनी को मात्र 100 करोड़ रुपए का ठेका दिया गया, लेकिन काम 304 करोड़ रुपए का किया जा रहा था। जानकारों का कहना है, बांध की तकनीकी रिपोर्ट देखे बिना पानी भरने का निर्णय किसने लिया? इस बिंदु पर जांच होनी चाहिए। क्योंकि, जिस तरह की िस्थतियां बनीं, उससे साफ है कि बांध में कई तकनीकी खामियां थीं। इतनी बड़ी लापरवाही के बाद भी स्थानीय अफसरों की गलतियों पर पर्दा डाला जा रहा है।
जल संसाधन विभाग कारम बांध को लेकर अफसर, ठेकेदार कंपनियों की गलती के आकलन में लगा है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर जांच कमेटी बनी है, जिसने बुधवार को सिर्फ बांध स्थल को देखकर भोपाल रवानगी डाल दी। सदस्य स्थानीय लोगों के दर्द से रूबरू नहीं हुए। अब वहीं से कागजी पड़ताल कर रिपोर्ट तैयार की जा रही है। वास्तविक रूप से हुई हानि की जांच स्थानीय स्तर पर सौंपते हुए लीपापोती कर दी गई।
जानकारी के अनुसार, कारम बांध घोटाला ई-टेंडर घोटाले का हिस्सा है। चार साल पहले जब एएनएस कंपनी का नाम आया था, तब भी इसे ब्लैक लिस्ट किया गया था। इसके बाद भी इतना बड़ी जिम्मेदारी वाला काम इसी कंपनी से करवाया गया।