राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग ने 30 जून तक डिग्री या डिप्लोमा पूरा करने वाले छात्रों को फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम में भाग लेने की छूट दी है, लेकिन जिनकी डिग्री पूरी नहीं हुई है, उनके लिए आगे की पढ़ाई मुश्किल है। यूक्रेन से लौटने के दौरान कहा गया था कि इनको भारत में ही समायोजित किया जाएगा। आवश्कता पड़ी तो फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंसिएट रेगुलेशन एक्ट में बदलाव पर भी विचार होगा। लेकिन एनएमसी ने विद्यार्थियों को एडजस्ट करने की अनुमति नहीं दी है। केंद्र ने भी राज्यसभा में यह स्पष्ट किया है।
-अन्य देशों में ट्रांसफर से प्रवेश लेने से पहले वहां का अच्छा क्लिनिकल रोटेशन हॉस्पिटल और अच्छी इंटर्नशिप सुविधा की पड़ताल कर लें।
-विदेश में प्रवेश लेने से पहले भारतीय दूतावास से जानकारी लें, एनएमसी नियमों को समझकर ही आगे की योजना बनाएं।
…तो डॉक्टरों की कमी कैसे होगी पूरी
एनएमसी के अनुसार विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले स्क्रीनिंग टेस्ट रेगुलेशन 2002 और फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंसिएट रेगुलेशन 2021 के तहत आते हैं। इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956 और नेशनल मेडिकल कमीशन एक्ट 2019 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत यूक्रेन से लौटे मेडिकल स्टूडेंट्स को देश के मेडिकल कॉलेजों में ट्रांसफर किया जा सके। इन्हें जॉर्जिया, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, रूस, हंगरी, पौलेंड सहित अन्य देश पढ़ाई पूरी करने के लिए निमंत्रण तो दे रहे हैं, लेकिन मेडिकल फीस, वीजा और रहने-खाने का खर्चा यूक्रेन से लगभग दोगुना हो रहा है। युद्ध और बढ़ने की आशंका के कारण विद्यार्थी वहां जाने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं। अगर इनकी पढ़ाई पूरी हो तो देश में चल रही डॉक्टरों की कमी पूरी हो सकेगी।
यूक्रेन में शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्र मुझसे मिले थे। वे यहां पढ़ाई नियमित रखना चाहते हैं। उन्हें यहां समायोजित करने का अधिकार एनएमएसी को है। उनका ज्ञापन एनएमएसी को भेज दिया है। सरकार ने उनके ज्ञापन पर विचार करने को कहा है, लेकिन अभी तक वहां से दिशा-निर्देश नहीं मिले हैं।
-विश्वास सारंग, चिकित्सा शिक्षा मंत्री, मध्यप्रदेश