इंदौर के मूर्तिकार राकेश वर्मा एक ऐसे ही कलाकार हैं जिन्होंने अपनी रचनात्मकता से मूर्तिकला को एक नया आयाम दिया और लोगों के छोटे आकार के स्टैच्यु बनाए। कला के प्रति उनमें ऐसा जुनून है जिसने उन्हें मूर्तिकला के एक अनोखे मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उन्होंने क्ले से किसी भी व्यक्ति का चित्र देखकर उसका स्टैच्यु निर्माण करना प्रारंभ किया।
राकेश वर्मा एक ऐसे कलाकार हैं जो अपने प्रत्येक ग्राहक के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं और वही भाव उसके स्टैचू में भी लाने की कोशिश करते हैं। इस रचनात्मक कला के क्षेत्र में उनके पास 11 साल का अनुभव है। उन्होंने इंदौर में बतौर ग्राफिक डिजाइनर, फोटोग्राफर और क्रिएटिव डायरेक्टर की हैसियत से विभिन्न एजेंसियों में काम किया है।
काम के प्रति समर्पण और अभिनव दृष्टिकोण रखने के साथ ही वे हमेशा अपने ग्राहकों को अनुकूलित बजट से खुश रखने की भी कोशिश करते हैं। अपनी कला यात्रा की शुरुआत में उन्होंने सबसे पहले स्व एपीजे
अब्दुल कलाम का स्टैचू बनाया जिसे काफी सराहा गया। नोबेल पुरस्कार विजेता
कैलाश सत्यार्थी की मूर्ति बनाने को भी वे एक उल्लेखनीय उपलब्धि मानते हैं।
राकेश वर्मा बताते हैं मुझे छोटे स्टैच्यु बनाने की प्रेरणा चौराहों पर नेताओं और प्रसिद्द हस्तियों के स्टैच्यु से मिली। उन्हें लगा कि केवल नेताओं और प्रसिद्ध लोगों के ही स्टैच्यु क्यों बनें आम आदमी के पास भी छोटे रूप उसकी खुद की या उसके परिजन की मूर्ति हो सकती है। मैंने दिसंबर 2016 से इस पर काम करना शुरू किया। मैंने क्ले से ऐसी मूर्तियां बनाना शुरू की और अब तक कई लोगों की मूर्तियां बना चुका हूं।
सबसे पहले मैंने एपीजे कलाम से काम शुरू किया फिर कुछ मॉडल बनाए। पिछले दिनों कैलाश सत्यार्थी की इंदौर यात्रा के दौरान मुझे डेली कॉलेज में उनसे मिलने का मौका मिला तो मैंने उनका मिनी स्टैच्यु उन्हें भेंट किया। वे आश्चर्यचकित हुए और मेरी कला को बहुत सराहा। मैंने मल्टीमीडिया में डिप्लोमा किया है और इस मूर्तिकला को मैंने स्वयं विकसित किया है इसे इंटरनेट पुस्तक और अन्य माध्यम से संवारने की कोशिश करता हूं।