भाजपा के कुछ नेता ऐसे हैं जिनका सालों से सूरज अस्त नहीं हुआ। उनमें से एक शंकर लालवानी भी हैं। 1993 में चार नंबर भाजपा से वे अध्यक्ष बने थे। तीन साल बाद 1996 में नगर निगम के चुनाव हुए जिसमें लालवानी को नगर निगम चुनाव में जयरामपुर वार्ड से टिकट मिल गया। अपने भाई व कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश लालवानी को हराकर पार्षद बने।
उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। डॉ. उमाशशि शर्मा के महापौर कार्यकाल में वे सभापति जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहे। तीन बार पार्षद रहने के बाद पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, लेकिन कुछ दिनों बाद ही उन्हें नगर भाजपा का अध्यक्ष बना दिया गया। अध्यक्ष रहते ही उन्हें इंदौर विकास प्राधिकरण की जवाबदारी दे दी गई।
पांच साल एक छत्र राज करने के बाद हाल ही में कांग्रेस सरकार ने उन्हें हटा दिया। तब से वे फ्री हैं, लेकिन उन्होंने नए राजनीतिक सफर के लिए राह तलाशना शुरू कर दी है। उनकी निगाह अब सालभर बाद आने वाले नगर निगम चुनाव पर है। टर्न के हिसाब से पूरी संभावना है कि महापौर का पद इस बार पिछड़ा वर्ग पुरुष के लिए आरक्षित हो सकता है।
लालवानी भी पिछड़ी जाति में आते हैं जिसके चलते उन्होंने बिसात जमाना शुरू कर दी है। इसके लिए वे अब ताई को साधने में जुट गए हैं। सामान्य वर्ग को १० प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले बाद ताई दो दिन पहले इंदौर आई थीं। इस मुद्दे पर भाजपा या सामान्य वर्ग को आयोजन करना था, लेकिन लालवानी ने आयोजन की घोषणा कर दी। मजबूरी में पार्टी को अपने कदम पीछे हटाने पड़े। इधर, आयोजन भी फ्लॉप शो साबित हुआ।
बांके बिहारी की करेंगे आरती
आईडीए अध्यक्ष रहते हुए लालवानी ने बांके बिहारी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उसे बताने के लिए उन्होंने आज मंदिर में छप्पन भोग और महाआरती का आयोजन रखा है, जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर ताई को बुलाया गया। ये आयोजन धार्मिक मंच के नाम पर किया जा रहा है।
विधानसभा के थे प्रबल दावेदार
प्रदेश की सिंधी बाहुल्य विधानसभाओं में चार नंबर भी एक है। इस सीट से लालवानी तीन चुनाव से दावेदार हैं। इस बार भी उन्होंने टिकट को लेकर ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। पार्टी नेताओं ने उन्हें आश्वासन दिया था कि उन्हें अच्छी जगह उपकृत किया जाएगा।