मध्य प्रदेश के आर्थिक शहर इंदौर की रहने वाली रोहिणी स्विट्जरलैंड के जिनेवा में रहकर पीएचडी कर रहीं हैं। वे 16 मार्च को संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखेंगी। रोहिणी खुद दलित समाज का प्रतिनिधित्व करतीं हैं और अक्सर दलितों के पक्ष में आवाज उठाती रहतीं हैं। इसी कारण भारत सरकार ने रोहिणी का चयन मानव अधिकारों पर भारत का पक्ष रखने के लिए किया है।
यह भी पढ़ें- मसूर महंगी होकर 5875 रुपए बिकी, कच्चे मालों में तेजी से मूंग दाल और मसूर दाल के दाम बढ़े
मेरे लिए गर्व का क्षण- रोहिणी
इस संबंध में रोहिणी का कहना है कि, भारत में एक दलित को राष्ट्रपति बनाया जाता है। पिछड़े वर्ग से आने वाले व्यक्ति हमारे प्रधानमंत्री हैं। इसके बाद भी पाकिस्तान जैसे देश भारत में मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा उठाते हैं। इन्हीं बातों का जवाब देने के लिए मुझे मौका मिला है। ये मेरे लिए बेहद खुशी और गर्व का क्षण है।
जेवर गिरवी रखकर की थी पढ़ाई
रोहिणी की मां नूतन घावरी कर्मचारी राज्य बीमा निगम अस्पताल में सफाईकर्मी है। उनके पिता भी सफाईकर्मी थे, पर वे नौकरी छोड़कर राजनीति और समाजसेवा में लग गए। रोहिणी की दो बहन और एक भाई है। एक बहन डेंटल सर्जन है, जिसका चयन राज्य सरकार में मेडिकल अधिकारी के लिए हो चुका है। एक बहन एलएलबी कर रही है। भाई इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है। मां नूतन का कहना है कि, रोहिणी का मन बचपन से ही पढ़ाई में खूब लगता था। जब उसने पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो हमने उसे जेवर गिरवी रख पढ़ाया। रोहिणी ने मार्केटिंग में एमबीए किया। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए प्रदेश सरकार के अनुसूचित जनजाति विभाग ने उसे एक करोड़ रुपए की स्कॉलरशिप दी है। इससे वे जिनेवा में रहकर पीएचडी कर रहीं हैं।
दलितों – पिछड़ों के पक्ष में अपने विचार रखती हैं रोहिणी
वहीं, रोहिणी कहतीं है कि, मेरे माता – पिता ने बड़े कष्टों के बाद हमें इस मुकाम पर पहुंचाया है। हम चारों भाई – बहन आज दलित समाज के लिए मिसाल बन चुके हैं। रोहिणी इंटरनेट मीडिया पर मुखरता से अपनी बात रखतीं हैं। वे आए दिन समाज सुधार, दलितों और पिछड़ों के पक्ष में अपने विचार व्यक्त करतीं हैं। लड़कियों की शिक्षा को लेकर भी बोलतीं हैं। सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती हैं, क्योंकि उनका मानना है कि, सोशल मीडिया एक ऐसा माध्यम है, जिसके जरिए आप एक समय में लाखों लोगों तक पहुंच सकते हैं और अपनी बात कह सकते हैं।