रेकी हीलिंग से फूटने लगे अंकुर
कीट लगने से सूख रहा था पारिजात का पौधा
इंदौर. कीट लगने के कारण मृतप्राय हो चुके पारिजात के पौधे को रेकी हीलिंग से सजीव बनाने के दावे किए जा रहे हैं। इंदौर के 27 वर्षीय रोहित चौधरी रेकी हीलिंग थैरेपी पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह साइंटिफिक थैरेपी है। चमत्कार जैसा कुछ नहीं। विशेष थैरेपी से यह प्रक्रिया की जाती है, जिससे पौधा हरा-भरा हो जाता है।
मंदिर के पुजारी विजय महाराज ने बताया कि पारिजात का पौधा कीट लगने के कारण सूख गया था। रोहित चौधरी को बताया तो उन्होंने रेकी हीलिंग की। दो दिन में पौधे में अंकुर फूटने लगे। रोहित एक अकल्ट साइंटिस्ट हंै। उनका कहना है कि रेकी एक साधारण विधि है, लेकिन इसे पारंपरिक तौर पर नहीं सिखाया जा सकता। विद्यार्थी इसे रेकी मास्टर से ही सीखता है।
ऐसे काम करती है थैरेपी
रेकी हीलिंग थैरेपी के बारे में बताते हुए रोहित ने कहा, शरीर में कई ऊर्जा केंद्र होते हैं, जिन्हें हीलिंग के दौरान हाथों के स्पर्श से नियंत्रित किया जाता है। इस दौरान शरीर में सात चक्रों की ऊर्जा को भी नियंत्रित तथा संतुलित किया जाता है। ब्रह्मांड में हमारे आसपास हर वस्तु, यहां तक की हर व्यक्ति में ऊर्जा पाई जाती है। रेकी हीलर जब किसी व्यक्ति की हीलिंग करता है तो वह अपनी सकारात्मक ऊर्जा के साथ ब्रह्मांड की सकारात्मक ऊर्जा को भी हीलिंग लेने वाले व्यक्ति में स्थानांतरित करता है। इससे मन शांत होता है।
इस तरह हुई उत्पत्ति
रेकी एक आध्यात्मिक अभ्यास पद्धति है जिसका विकास 1922 में मिकाओ उसुई ने किया था। यह उपचार संबंधी एक जापानी विधि है। इसकी उत्पत्ति भी भारत में ही हुई है। प्राचीन काल में भारत में स्पर्श चिकित्सा का ज्ञान था। अथर्ववेद में भी इसके प्रमाण पाए गए हैं। लिखित में यह विद्या न होने से धीरे-धीरे इसका लोप होता चला गया। ढाई हजार वर्ष पहले भगवान बुद्ध ने ये विद्या अपने शिष्यों को सिखाई। ‘कमल सूत्र’ नामक किताब में भी इसका वर्णन है। भिक्षुओं के साथ तिब्बत और चीन होती हुई यह विद्या जापान तक पहुंची।
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