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आपातकाल, दंगों और भीषण सूखे में भी निकली थी गेर, पर…
आपको बता दें कि, पिछले 75 सालों से हर साल रंगपंचमी के दिन शहर में गेर निकाली जाती है। गेर में शहर ही नहीं बल्कि प्रदेश और देशभर से हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। लेकिन, शहर में कोरोना के एक बार फिर बढ़ते मामलों के चलते पिछले साल की तरह इस साल भी शहर में रंगपंचमी पर गेर नहीं निकाली जा सकेगी। आपको ये भी बता दें कि, 75 सालों में ऐसा न ही आपातकाल, दंगों और भीषण सूखे के दौरान हुआ जब शहर में निकलने वाली गेर का सिलसिला रोका गया हो, लेकिन कोरोना महामारी के चलते इसे लगातार दूसरी बार रोकने का फैसला लिया गया है।
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क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक में लिया गया फैसला
देर शाम होने वाली क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक के बाद इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने बताया कि, शहर में कोरोना के दोबारा से मामले बढ़ने के बाद कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए हैं। बैठक में तय किया गया है कि…
दंगे के माहौल में कलेक्टर ने कहा था- ‘गेर निकालो तो शहर का माहौल सुधरे’
गेर का संचालन करने वाली टोरी कॉर्नर गेर संस्था के संयोजक शेखर गिरि के मुताबिक, पिछले 74 साल में हमारी गेर एक बार अभी पांच साल पहले स्वेच्छिक रूप से रद्द की गई थी, लो भी इसलिये क्योंकि, आयोजन में शामिल हमारे साथी का उसी दिन निधन हो गया था। इसके अलावा 2002-03 में सूखा पड़ने पर प्रशासन ने कम पानी वाली गेर निकाली गई थी, लेकिन आपातकाल के समय भी इसे निरस्त नहीं किया गया था। 90 के दशक में जब रामजन्म भूमि आंदोलन के दौरान शहर के कई हिस्सों में दंगा हुआ था, तब हमें लग रहा था कि, प्रशासन की ओर से गेर निरस्त कर दी जाएगी। उस दौरान कलेक्टर नरेश नारद थे। उन्होंने हमें बुलाकर कहा कि, शहर में ऐसा वातावरण देखकर अच्छा नहीं लग रहा, आप लोग इस बार गेर जरूर निकालो। इससे थोड़ा माहौल बदलेगा और ऐसा ही हुआ। गेरों का रंगारंग कार्यक्रम हुआ, उसके बाद शहर में तनाव भी कम हुआ।
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