यहां आता हूं तो अपनापन लगता है। मालूम हो, राना का 71 साल की उम्र में रविवार को इंतकाल हो गया। इंदौर की साहित्यिक बिरादरी उनके जाने से गमजदा है। इंदौर के लोगों का कहना है कि साहित्य के मंच पर मां का जिक्र आगे भी होगा, लेकिन उम्रदराज होकर भी मां और उसके दामन से लिपटा बेटा मुनव्वर राना अब अपने दूसरे घर यानी इंदौर नहीं लौटेगा।
सतलज ने बताया-ऐसे थे राहत के दोस्त राना
इंदौर से राना की मोहब्बत की एक और वजह थी कि यहां उनके करीबी दोस्त राहत इंदौरी भी रहते थे। राहत इंदौरी के बेटे और शायर सतलज राहत ने बताया कि 2008 में उन्होंने इंडो-पाक मुशायरा कराया था। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम हॉल में हुए मुशायरे में भारत-पाकिस्तान के अलावा दुनियाभर के शायर आए थे। कई नए शायरों को मौका दिया गया, जिसमें आज की ख्यात शायरा रिहाना रूही भी एक हैं। उनकी रहनुमाई में बास्केटबॉल कॉम्प्लेक्स में मुशायरा हुआ था, जिसमें कुमार विश्वास ने काफी रंग जमाया था। राना मन के राजा थे। जब तक वे स्टेज पर न पहुंच जाएं, तब तक आयोजकों की सांसें अटकी रहती थीं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण खजराना का एक बड़ा मुशायरा है।
इसमें उन्हें चांदी का मुकुट पहनाया जाना था। आयोजक ने उन्हें मोटा मेहनताना और आने-जाने से लेकर सारी सुविधाएं दीं, लेकिन सबकुछ ठुकराकर वे नहीं आए। बाद में एक शख्स ने उन्हें अपने घर के कार्यक्रम में मुशायरा पढ़ने बुलाया तो वे बिना राशि लिए पहुंचे। मुनव्वर राना इंदौरी खाने के बहुत शौकीन थे। वे बोलते थे कि जहां खाना-वहां राना। उन्हें इंदौर पर खासा भरोसा था, इसलिए घुटनों का ऑपरेशन भी कराया था। सतलज ने बताया कि जब भी राना साहब इंदौर आते थे, तब वे घर जरूर आते थे। वे कहते थे कि मैं राहत साहब से नहीं बच्चों और परिवार से मिलने आया हूं। बातों-बातों में ऐसे शेर सुना देते थे, जो दिल को छू जाते थे। उनके जाने से शायरी का एक दौर थम गया, मंच खामोश हो गया।