फैमिली कोर्ट ने महिला की अर्जी खारिज कर दी थी। जिसके बाद महिला ने फैमिली कोर्ट के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी की बेंच ने कई कानूनी पहलुओं पर विचार करते निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और महिला की तलाक की अर्जी को मंजूर कर लिया।
इंदौर बेंच ने सुनाया फैसला
हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने 13 नवंबर को सुनाए हुए फैसले में कहा है कि पति या पत्नी एक साथ रहना चाहते हैं या नहीं, ये उनकी इच्छा है। “पति या पत्नी में से कोई भी दूसरे पक्ष को नौकरी नहीं करने या जीवनसाथी की पसंद के अनुसार नौकरी करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है।” साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पति ने पत्नी पर दबाव डाला कि वह अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दें।
इधर, कोर्ट ने ये भी कहा है कि पत्नी को नौकरी छोड़ने और उसे पति की इच्छा के अनुसार रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता की श्रेणी में आता है।