भाई के सपनों को पूरा करने का सकल्प निभा रही
एक नन्हीं मासूम बच्ची को जब पैरों से चलना सीखना था, उसी समय पता चला कि वह कभी चल नहीं सकेगी। पैरों की ताकत खो चुकी पूजा ने अपने बड़े भाई को खेलते देखा। लेकिन खेल मैदान में हुई दुर्घटना में उसने भी हमेशा के लिए पूजा का साथ छोड़ दिया। वह भी इस दुनिया को अलविदा कह गया। तब पहली बार पूजा को लगा कि खेलों में जो नाम कमाने की इच्छा भाई की थी, वह उसे पूरा करेगी। अकेले अपने इरादे और हिम्मत के बलबूते पूजा तालाब के गहरे पानी में उतर गई। और फिर इसमें ऐसी डूबी कि अब लगातार लहरों से लड़ती हुई अपने भाई के सपने को साकार करने में जुट गई है।
पोलियो ने छीने पैर
जानकारी के मुताबिक पूजा जब 10 महीने की थी तब पोलियो के कारण उसके पैर खराब हो गए थे। वह 80 फीसद दिव्यांग है। ऐसे में वह खेलने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकती थी। लेकिन वह बड़े भाई को क्रिकेट और कबड्डी खेलते देखती थी, तो उसे अच्छा लगता था। पूजा के मुताबिक उसके बड़े भाई को क्रिकेट और कबड्डी में महारत हासिल थी। लेकिन फिर एक दिन कबड्डी स्पर्धा के दौरान ही एक घटना में भाई का निधन हो गया। मैं उनके कारण ही खेलों की ओर आकर्षित हुई थी। भाई के निधन के बाद पूजा को लगा कि अब उसे खेलों में नाम कमाना है और भाई के सपनों को पूरा करना है।
राह नहीं थी आसान
पूजा के मन में खिलाड़ी बनने का ख्याल जरूर आया था। लेकिन उसके लिए यह राह बेहद मुश्किल थी। पूजा के मुताबिक भिंड में गौरी तालाब है। यहां एक बार ड्रेगन बोट स्पर्धा हुई। यह देखकर लगा कि वह नाव चला सकती है। इसमें पैरों की जरूरत नहीं होती। लेकिन पानी से उसे डर लगता था, इसलिए यह भी मुश्किल बन पड़ा। बाद में उसने तैराकी सीखी। इस खेल में जीवनरक्षक जैकेट पहनकर ही नाव चलाना होती है, इसलिए जोखिम कुछ कम था। बस फिर क्या था वर्ष 2017 से पूजा ने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी। हालांकि पूजा को आज भी थोड़ा डर लगता है। वहीं उसके माता-पिता भी डरते हैं। वह बताती है कि आज वह और उसके माता-पिता रिश्तेदारों की कई बातें और रोक-टोक झेलते हैं, लेकिन वह सबकुछ भूलकर हर बार एक नयी ताकत बनकर आगे बढऩे का संकल्प लेती है। माता-पिता के प्यार और खुद के दृढ़ संकल्प के कारण ही आज वह यहां तक पहुंची है कि अपनी एक अलग पहचान बनाई और देश-दुनिया में पहचानी जा रही है।
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हौसलों से जीत रही कॅरियर की जंग
भिंड में रहने वाली दिव्यांग पूजा ओझा कैनोइंग खिलाड़ी है। एक झुग्गी बस्ती में छोटा सा घर है पूजा का। पिता मजदूर हैं। क्षेत्र में रूढि़वादी सोच अब भी है। जब पूजा ने खेल में आगे बढऩे का फैसला किया तो रिश्तेदारों और परिचितों ने माता-पिता को रोका भी और टोका भी। कई तरह की बातें बनती रहीं, लेकिन पूजा के हौसले और माता-पिता का लगातार मिल रहा साथ आज उसे इस मुकाम पर ले आया है कि उसे दुनिया जानती है।