प्रदर्शनी में भोपाल से आए अनुज राठौड़ अपने साथ गोबर शिल्प की वस्तुएं लाए हैं। गोबर को प्रोसेस कर उन्होंने खूबसूरत घडिय़ां , पैन स्टैंड , मंदिर, तोरण, फ्लॉवर पॉट आदि बनाए हैं। अनुज ने बताया कि मेरी इस थॉट के पीछे ट्रेडिशनल और सोशल दोनों सोच थी। मैंने अपनी दादी-नानी को घर में मांडना बनाते और गोबर का काम करते देखा और तीन साल पहले वहीं से आइडिया आया। हम पहले गोबर को अच्छी तरह साफ करते हैं और प्रोसेस करने के बाद बड़ी शीट्स पर लगाकर हीट देते है जिससे ये सॉलिड हो जाता है। मेहंदी की डिजाइंस के साथ इन्हे सुंदर रूप दिया जाता है । प्रदर्शनी प्रभारी दिलीप सोनी ने बताया कि प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।
राष्ट्रपति भवन के लिए बना चुके हैं दरी
प्रदर्शनी में सीधी से आए शिल्पी दोश मोहम्मद राष्ट्पति भवन के लिए पंजा दरी बना चुके हैं। उनके हाथों की ये दरियां आज भी राष्ट्रपति भवन में बिछी हुई है। उन्हें इसके लिए राष्ट्रपति पुरस्कार दिया गया है। वे कॉटन ओर सिल्क की दरियों पर शानदार बुनाई करते हैं। उन्होने बताया कि हमारी दूसरी पीढ़ी इस काम में लगी हुई है और लगभग ६० सालों से हम इस पर काम कर रहे है। हमने इसमें कई बदलाव देखे हैं। पहले फ्लॉवर्स की बारीक डिजाइंस पसंद की जाती थी, लेकिन अब हाथी-घोड़े जैसी डिजाइंस की डिमांड ज्यादा है। ३ बाय ५ की एक दरी बनाने में दो कारीगर को १० दिन लग जाते हैं। इसकी बड़ी वजह है कि इसकी विविंग कठिन होती है।
प्रदर्शनी में सीधी से आए शिल्पी दोश मोहम्मद राष्ट्पति भवन के लिए पंजा दरी बना चुके हैं। उनके हाथों की ये दरियां आज भी राष्ट्रपति भवन में बिछी हुई है। उन्हें इसके लिए राष्ट्रपति पुरस्कार दिया गया है। वे कॉटन ओर सिल्क की दरियों पर शानदार बुनाई करते हैं। उन्होने बताया कि हमारी दूसरी पीढ़ी इस काम में लगी हुई है और लगभग ६० सालों से हम इस पर काम कर रहे है। हमने इसमें कई बदलाव देखे हैं। पहले फ्लॉवर्स की बारीक डिजाइंस पसंद की जाती थी, लेकिन अब हाथी-घोड़े जैसी डिजाइंस की डिमांड ज्यादा है। ३ बाय ५ की एक दरी बनाने में दो कारीगर को १० दिन लग जाते हैं। इसकी बड़ी वजह है कि इसकी विविंग कठिन होती है।