मंगलवार को मुनि मनीषप्रभ सागर ने कंचनबाग स्थित श्री नीलवर्णा पाश्र्वनाथ जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक ट्रस्ट में चार्तुमास धर्मसभा को संबोधित करते हुए उक्त विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जीवन की साधना के लिए चार बातें मुख्य है। पुण्य वैभव, प्रज्ञा वैभव, प्रेम और पुरुषार्थ वैभव है। आज लोग धर्म नहीं केवल वैभव चाहते है। जबकि धर्म साथ जाता है। एक पुण्य से सुख-सुविधाएं मिलती है तो दूसरे पुण्य से धर्म-परमात्मा मिलते है। कई संतो को बाद में ही धर्म की प्राप्ति हुई है। सारा जीवन धन के पीछे भागते है। इस तरह तो धन ही मालिक बन गया है। धर्म को जानने-पहचानने के लिए प्रज्ञा चाहिए। लोगों को पता ही नहीं होता कि उन्हें धर्म क्या दे सकता है। परमात्मा को पहचानने की प्रज्ञा होना चाहिए, क्योंकि उन्हें मालिक बनाया तो वे ही रक्षा करते है। लेकिन धन-संपत्ति रक्षा नहीं करती। जब तक धर्म से प्रेम नहीं होगा, तब परमात्मा से प्रेम नहीं होगा। बिना पुरुषार्थ धर्म नहीं हो सकता। ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता एवं सचिव संजय लुनिया ने बताया कि मुनि मनीषप्रभ सागर आदिठाणा व मुक्तिप्रभ सागर प्रतिदिन सुबह 9.15 से 10.15 तक अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगे।
नीलवर्णा जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता एवं सचिव संजय लुनिया ने जानकारी देते हुए बताया कि खरतरगच्छ गच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी के सान्निध्य में उनके शिष्य पूज्य मुनिराज श्री मनीषप्रभ सागरजी म.सा. आदिठाणा व मुक्तिप्रभ सागरजी प्रतिदिन सुबह 9.15 से 10.15 तक अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगे। कंचनबाग उपाश्रय में हो रहे इस चातुर्मासिक प्रवचन में सैकड़ों श्वेतांबर जैन समाज के बंधु बड़ी संख्या में शामिल होकर प्रवचनों का लाभ भी ले रहे हैं। धर्मसभा में डॉ. बंसत लुनिया, दिलीप जैन, निर्मला वोरा, डॉ. एलएल जैन, रूपेश शाह आदि उपस्थित थे।