रहन-सहन और पहनावा कुछ-कुछ महत्मा गांधी जैसा, एक धोती और तन ढंकने के लिए एक कपड़ा। यही उनकी पहचान भी है। दृढ़ निश्चय के दम पर वनवासियों के साथ मिलकर नई इबारत लिखने वाले महेश शर्मा को आदिवासी विकास और सामाजिक कार्यों के लिए पद्मश्री से नवाजा जाएगा। शिव गंगा अभियान प्रमुख शर्मा ने ग्रामीणों को सिखाया कि झाबुआ की बंजर भूमि पर पानी से खेती किस तरह से की जा सकती है।
1998 से झाबुआ को बनाया कर्मक्षेत्र
मूलत: दतिया जिले के घोंगसी ग्राम के रहने वाले महेश ने 1998 से झाबुआ को अपना कर्म क्षेत्र बनाया तो फिर यहीं के होकर रह गए। 2007 तक वनवासी कल्याण परिषद के कर्मठ सिपाही बनकर जनहितैषी और जन जागरूकता अभियान चलाए। इसके बाद शिव गंगा प्रकल्प के रूप में झाबुआ को पानीदार बनाने का बीड़ा उठाया। शहर से लगी हाथीपावा की पहाड़ी पर शिवजी का हालमा अभियान के तहत 1 लाख 11 हजार जल संरचनाएं जनभागीदारी के जरिए बनवाई। इसका परिणाम है, करोड़ों लीटर पानी जमीन में उतरा और भूजल स्तर बढ़ा। इसके अलावा 350 गांवों में 5 हजार से अधिक छोटी बड़ी जल संरचनाओं का निर्माण कराया। यही कारण है, सूखे से जूझने वाले गांवों में जहां एक समय मक्का की खेती होती थी वहां गेहूं की पैदावार होने लगी है। वनवासी साल में दो फसल लेने लगे हैं।मैं तो केवल निमित्त बना हूं
महेश शर्मा को पद्म श्री पुरस्कार के लिए नामांकित किया तो भी बिना किसी औपचारिकता के उन्होंने बस इतना कहा कि सभी का श्रम आज सार्थक हुआ। मैं तो केवल निमित्त बना हूं।