इंदौर. जहां प्यार होता है, वहां गलतियों पर ध्यान नहीं जाता। लेकिन जिनके प्रति प्यार नहीं होता, वहां एक-दूसरे की गलतियों और शिकायतों का सिलसिला कभी खत्म नहीं होता। पहले परिवार बड़े होते थे और सब एक साथ संयुक्त परिवार के रूप में आनंद से रहते थे, लेकिन अब एकांकी परिवारों का प्रचलन बढ़ रहा है। पहले चाल सिस्टम में रहने का आनंद कुछ और ही था। वहां असुविधा तो थी, लेकिन सुरक्षा भी थी। वर्तमान में व्यक्ति अकेले रहता है, जहां सुविधाएं तो बहुत हैं, मगर सुरक्षा नहीं है। जन्म के समय जो माता-पिता हमारे पास मौजूद थे, क्या उनके अंतिम समय में हम उनके पास रहेंगे, इसकी कोई गारंटी है।
पद्मभूषण जैनाचार्य रत्न सुंदर सूरीश्वर ने बुधवार को दशहरा मैदान पर चल रही परिवर्तन प्रवचनमाला में ‘प्यार ही है परिवार का आधार’ विषय पर उक्त विचार रखें। उन्होंने कहा, माता-पिता की सेवा और देखभाल परमात्मा के भी पहले की जाना चाहिए। समाज में कितने बेटे ऐसे हैं, जो अपने से भी श्रेष्ठ और बढिय़ा कपड़े, भोजन आदि अपने माता-पिता को उपलब्ध कराते हैं। आजकल एकल परिवारों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन संयुक्त परिवार का आनंद सबसे अनुपम होता है। सबसे बड़ी बात है कि संयुक्त परिवार अपने सभी सदस्यों के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं।