इंदौर

इंदौर नगर निगम तंगहाल, प्रदेश सरकार से मांगे 218 करोड़

पैसा दिलाने के लिए नगरीय प्रशासन के प्रमुख सचिव को लिखी चिट्ठी, तनख्वाह-पेंशन बांटने के साथ अन्य खर्चों को उठाने के पड़ जाएंगे लाले

इंदौरJun 06, 2019 / 11:16 am

Uttam Rathore

इंदौर नगर निगम तंगहाल, प्रदेश सरकार से मांगे 218 करोड़

इंदौर. नगर निगम इन दिनों तंगहाली के दौर से गुजर रहा है। अगर राज्य शासन हर महीने चुंगी क्षतिपूर्ति के 45 करोड़ रुपए न दे, तो तनख्वाह-पेंशन बांटने के साथ अन्य खर्चों को उठाने के लाले पड़ जाएंगे। निगम अभी चुंगी क्षतिपूर्ति और राजस्व वसूली के भरोसे खर्च उठा रहा है, लेकिन इसमें भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही ठेकेदारों का भुगतान भी नहीं कर पा रहा है।
कंगाली से उबरने के लिए निगम ने 218 करोड़ रुपए देने की दरकार राज्य सरकार से की है। इसके लिए नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे को एक पत्र निगम लेखा विभाग ने लिखा है। इसमें सरकार से किस मद में कितना पैसा लेना है, पूरा हिसाब बनाकर दिया गया है। लेखा विभाग के अफसरों का कहना है कि राज्य सरकार यह 218 करोड़ रुपए की राशि देने के साथ जलूद में नर्मदा के लिए लगने वाली बिजली का हर महीने आने वाले 16 करोड़ रुपए के बिल की राशि का वहन खुद कर ले, तो काफी हद तक निगम की आर्थिक हालात सुधर जाएगी, वरना पैसों के अभाव में निगम की हालत बदतर हो जाएगी।
इन मदों में मांगी राशि
– स्टाम्प ड्यूटी- 118 करोड़ रुपए
– सभी मदों में 10 राशि जो मार्च में देय है-20 करोड़ रुपए
– मुख्यमंत्री अधोसंरचना – 40 करोड़ रुपए
– 14 वित्त आयोग – 40 करोड़ रुपए
– इस तरह सरकार से 218 करोड़ रुपए लेना है, जो कि वर्ष 2017-2018, 2018-2019 और 2019-2020
की राशि है।
हर महीने होती है इतनी राशि खर्च
– वेतन : 25 करोड़ रुपए
– पेंशन : 5 करोड़ 5 लाख रुपए
– पेट्रोल-डीजल का खर्च : 3 करोड़ रुपए
– बिजली बिल : 22 करोड़ रुपए
– टैक्स : 4 करोड़ रुपए
– लोन : 5 करोड़ 50 लाख रुपए
– बांड : 2 करोड़ 50 लाख रुपए
– अदर रेगुलर पेमेंट : 3 करोड़ रुपए
– हर महीने का यह खर्च उठाना हो रहा मुश्किल।
अपनों में बांट रहे रेवड़ी
एक तरफ जहां निगम आर्थिक तंगी का रोना रो रहा है, वहीं दूसरी तरफ अपनों यानी ठेकेदारों को पेमेंट की रेवड़ी बांट रहा है। जिन ठेकेदारों को पिछले 2 महीने से भुगतान नहीं हुआ, उन्होंने इस खबर के बाद से मोर्चा खोलना शुरू कर दिया है। ठेकेदारों में आक्रोश अलग है। 31 मार्च के पहले पेमेंट दिया गया, लेकिन इसके बाद अप्रैल-मई में एक रुपया नहीं दिया गया। पहले भी ठेकेदारों के लाखों-करोड़ों रुपए में से सिर्फ 10 प्रतिशत का ही भुगतान किया गया है। इसका ठेकेदारों ने विरोध करना शुरू कर दिया है। ठेकेदारों की बकाया राशि का आंकड़ा 350 करोड़ रुपए से ज्यादा का हो गया। निगम में पेमेंट की हालत खराब होने के चलते ठेकेदारों ने टेंडर डालाना ही बंद कर दिए। ठेकेदारों पर टेंडर डालने के लिए पार्षदों द्वारा दबाव भी बनाया जा रहा, लेकिन उन्होंने साफ कर दिया कि पैसा नहीं तो काम नहीं।

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