इंदौर

अगर जल जाए आपकी त्चचा, तो यह करें

पटाखे और आतिशबाजी के दौरान कभी-कभी जल जाने जैसे हादसे हो जाते हैं।

इंदौरNov 01, 2016 / 11:14 am

Kamal Singh

if you burn your skin will it grow back

त्वचा शरीर का सबसे बडा ऑर्गन है। जले हुए मरीजों का स्वस्थ होना जले हुए घाव के उचित प्रबंधन पर निर्भर करता है। आजकल जलने पर महत्वपूर्ण उपचार तत्काल ऑपरेशन द्वारा जली चमड़ी को हटाकर उस पर नई चमड़ी लगाना है। पिछले काफी सालों से जलने का उपचार घाव को साफ करना, मरी हुई त्वचा को हटाकर व दवाई लगाकर घाव को भरने के लिए छोड़ दिया जाता है, जिसमें ऊपरी सतह के बर्न दो हफ्ते में और निचली सतह के बर्न 4-6 हफ्ते में भरते हैं। इससे मोटे निशान और त्वचा सिकुडऩे की संभावना रहती है। त्वचा सिकुडऩे से मरीज की कायशैली प्रभावित होती हैं। प्लास्टिक, बर्न और कॉस्मेटिक सर्जन डॉ.अमित शर्मा बता रहे हैं त्वचा जलने पर कैसे सावधानियां रखें।


जलने की विभिन्न स्थितियां
सतही बाहरी बर्न
इसमें त्वचा की केवल बाहरी सतह जलती है। त्वचा लाल हो जाती है और दर्द होता है, लेकिन फफोले नहीं बनते। 3-4 दिन में बिना निशान छोडे त्चचा ठीक हो जाती है। उदाहरण के लिए तेज धूप के कारण जलना यानी सनबर्न होना।

सतही डर्मिस बर्न
इस तरह के बर्न में त्वचा की सबसे ऊपरी सतह ऊपर से जल जाती है, और घाव, गुलाबी, गीला और स्पर्श के लिए अतिसंवेदनशील होते हंै और फफोले बनते हैं। दबाने पर पीले पड़ जाते हैं। इसकी उचित देखभाल से 2-3 हफ्ते में बिना निशान छोड़े या बहुत कम निशान के ठीक हो जाते हैं।

गहरा डर्मल बर्न
त्वचा की ऊपरी सतह जल जाती है व घाव सफेद, सूखा और कम संवेदनशील होता है। इस तरह जल जाने पर ये तीन हफ्ते में ठीक नहीं होते, उन्हें एक्सिजन व ग्राफ्टिंग से यानी पुरानी चमड़ी हटाकर नई लगाई जाती है।

पूर्ण मोटाई के बर्न
इसमें पूरी त्वचा और त्वचा के नीचे के उत्तक जल जाते हैं। घाव चमड़े जैसा कड़क,दबा हुआ और असंवेदनशील होता है और दबाने पर पीला नहीं पड़ता है। इस जले स्थान की एक्सिजन व ग्राफ्टिंग करनी पड़ती है,जिससे मरीज को किसी संक्रमण, त्वचा के सिकुडऩ आदि से बचाया जा सके।

क्या है उपचार

नौ का नियम
नौ के नियम के अनुसार जले हुए भाग का अच्छी तरह पता किया जाता है जिसमें फ्लूयड की जरूरत की गणना की जाती है। इसमें फ्लूयड रिगेर लेक्टेट दिया जाता है। जिसमें पहला आधा हिस्सा शुरुआती 8 घण्टे में और दूसरा आधा हिस्सा, बाद के 16 घण्टे में दिया जाता है। कोई कोलोइड शुरुआती 24 घण्टे में नहीं दिया जाता है।

साधारण जलने पर
अमरीकी एसोसिएशन के वर्तमान दिशा निर्देशों के मुताबिक साधारण जले हुए को 30 मिनट तक बहते हुए नल के पानी से धोकर ठंडा कर सकते हैं।

फ्लूयड रिस्सीटेशन
कोई शख्स 20 से 25 फीसदी से अधिक जल गया है तो ऐसे मरीज को बर्न शोक से बचाने के लिए फ्लूयड रिस्सीटेशन यानी जरूरी फ्लूयड ड्रिप द्वारा चढ़ाया जाता है।

दर्द नियंत्रण
दर्द निवारक दवा नारकोटिक्स शुरुआती उपचार है और आपातकाल में मोरफिन भी दी जाती है ।

घाव की मरहम
संक्रमण रोकने के लिए घावों पर सिलवर सल्फाडाइजिन दवा लगाते हैं।

घाव की निरन्तर पट्टी
इसके तीन उद्देश्य हैं-
पट्टी ड्रैनेज को अवशोषित करती है।
बाहरी पदार्थों के संक्रमण से घाव को संरक्षित और बचाए रखती है। घाव में दर्द कम करती है।

ऑपेस्टिव घाव प्रबंधन
जल्दी एक्सिजन व ग्राफ्टिंग से जले हुए मरीजों में संक्रमण को कम किया जा सकता है साथ ही अस्पताल में भर्ती रहने के समय को भी सीमित किया जा सकता है ।

खुजली
खुजलाने से घाव बढ़ सकता है।
एंटीहिस्टेमिक कूल कंप्रेशन और लोशन से खुजली में आराम होता है।
डाइफिनाहाईड्रमाइन हाइड्रोक्लोराइड – खुजली के उपचार के लिए सबसे महत्वपूर्ण दवाई है।
एंटीबायोटिक्स केवल संक्रमण होने पर ही इस्तेमाल करनी चाहिए।

सिंथेटिक उत्तक तकनीक
बायोब्रिन: यह एक दो सतही पट्टी है। जिसमें बाहरी परत सिलिकॉन रबर की और अंदरूनी परत पारसाइन कॉलेंजाइन और नायलॉन के धागे से बनती है। यह गैसों के आदान प्रदान की सहायता करती है व पानी और जीवाणुओं के प्रवेश को रोकती है। अन्य सिंथेटिक उत्तक घाव पट्टियां- एपलीग्राफ्ट, इन्टीग्रा व एन्ड्रोम इन सब पट्टियों के परिणाम उत्साहजनक है, पर इनकी उच्च लागत एक नेगेटिव तत्व है।

जले घाव की देखभाल
ढीले व निष्प्राण उत्तकों को हटा दिया जाता हैै।
फफोले : फफोलों को लेकर अलग -अलग मत है, कुछ का मानना है फफोलों को ऐसे ही रहने दें, कुछ कहते हैं कि फफोलों को हटा देना चाहिए। घाव को नॉर्मल सैलाइन या स्टराइल पानी से साफ किया जाना चाहिए।

दस फीसदी से अधिक बॉडी के जलने पर।
चेहरे, हाथ, पैर, जननांग और जोड़ों के जलने पर।
करंट से जलने पर।
रासायनिक पदार्थ से जलने पर।
सांस में बर्न होने पर।
जलने के साथ ही शरीर के किसी और हिस्से में चोट लगना जैसे सिर में चोट, फ्रेक्चर। मरीज को पहले से कोई बीमारी होना जैसे -डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, अस्थमा।

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