गजलों का इतिहास बताते हुए यहबात नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने कही। मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति में बात हिन्दी की नहीं उर्दू की हुई और बहुत खूब हुई। ये मौका था एक खास कार्यक्रम ‘गजल का सफर’ का। इस कार्यक्रम में गजल पर बात करने के लिए मौजूद थे ललित निबंधकार नर्मदा प्रसाद उपाध्याय, समिति के प्रधानमंत्री सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी और शायर जुबैर बहादुर जोश। इनके बीच सूत्र संचालन किया संजय पटेल ने। इस प्रोग्राम की खासियत यह थी कि चर्चा के बीच-बीच में गायिका कनकश्री कुलकर्णी ने कुछ चुनी हुई गजलें भी पेश कीं।
वक्त के साथ बदले गजल के तेवर जुबेर बहादुर जोश ने कहा, गजल में बहर (शब्दों की जमावट) का अनुशासन जरूरी है। इस पर कई ग्रंथ भी लिखे गए हैं पर अब लिखने वाले व्याकरण पर ध्यान नहीं देते, बस यह देखते हैं कि उपर वाला मिसरा और नीचे वाला बराबर रहें। नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने कहा, गजल की खासियत यह है कि इसमें हर शेर अपने आप में मुकम्मल होता है, इसलिए एक ही गजल में कई विषयों पर शेर लिखे जाते हैं। गजल के विषय भी वक्त के साथ बदलते गए। पहले जहां केवल हुस्न-इश्क इसका विषय होते थे। वहीं बाद में इसमें अध्यात्म, राजनीति, शोषण, अन्याय, बेबसी, संघर्ष आदि कई विषय शामिल हो गए।
‘खुमार और जां निसार अख्तर तो इंदौर में रहे’ सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी ने पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया, इंदौर में मुशायरों की परंपरा पुरानी है। खुमार साहब और जां निसार अख्तर तो यहां रहे भी थे। यहां गजलों के एेसे उस्ताद शायर भी हुए हैं कि वे चलते हुए मुशायरे में शेर की गलती बताकर उसे सुधार भी देते थे। संजय पटेल ने बताया, 70 के दशक में जब गुलाम अली पहली बार इंदौर में आसान गजलें गा रहे थे तो एक श्रोता पन्नालाल अग्रवाल ने कहा, आप यह न समझें इंदौर के श्रोता उस्ताद शायरों की गजलें नहीं समझते। और तब गुलाम अली ने उस्ताद शायरों की क्लासिक गजलें गाईं।