दरअसल खजराना गणेश मंदिर का निर्माण १७३५ में महारानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। इस मंदिर की खासियत है कि यहां श्रीगणेशजी की प्रतिमा के साथ ही शिव और मां दुर्गा के भी मंदिर है। इस तरह से यहां गणेश जी अपने माता और पिता के साथ विराजमान है। इतना ही नहीं मंदिर प्रागंण में अन्य देवी-देवताओं के ३३ और मंदिर भी है।
खजराना मंदिर परिसर में एक पीपल का प्राचीन पेड़ है। भक्तजनों के बीच ये पेड़ मनोकामना पूर्ण करने वाले पेड़ के रूप में जाना जाता है। ऐसा बताया जाता है कि खजराना गणेश की ये प्रतिमा पंडित मंगल भट्ट को स्वप्न में दिखी थी। और पंडितजी के स्वप्र के आधार पर ही रानी अहिल्या बाई होल्कर ने जमीन की खुदाई करवा नीचे से ये भव्य मूर्ति निकलवाई और इसे मंदिर में स्थापित कराया। ये भी बताया जाता है कि जिस जगह से प्रतिमा निकली थी, वहां अब एक जलकुंड है। जो मंदिर के सामने है। कहा जाता है कि मुख्य प्रतिमा के नेत्र हीरे से जडि़त हैं और ये हीरे इन्दौर के एक व्यवसायी ने भेंट किए थे।
इतना ही नहीं खजराना गणेश मंदिर को देश के सबसे धनी मंदिरों में से एक माना गया है। भक्तों और श्रद्धालुओं की ओर से चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे के चलते ये मंदिर प्रदेश के अन्य मंदिरों से कहीं ज्यादा समृद्ध है। मंदिर समिति की ओर से यहां ऑनलाइन दान देने की सुविधा भी भक्तों को दी गई है। इसके साथ ही’लाइव दर्शन’ की ऑनलाइन सुविधा भी शुरू की है, ताकि श्रद्धालु घर बैठे भगवान गणेश दर्शन कर सकें।