यहां एकाक्षी श्रीफल में होते हैं गणेशजी के दर्शन
जूनी इंदौर शनि मंदिर के पास ही स्थित मंदिर की ख्याति पूरे प्रदेश में है। मंदिर की स्थापना के पीछे का किस्सा भी रोचक है जो भक्तों की श्रद्धा का कारण भी है।
इंदौर. शहर के प्रमुख गणेश मंदिरों में एक मंदिर ऐसा भी है जहां श्रीगणेश श्रीफल रूप में विराजित हैं। जूनी इंदौर शनि मंदिर के पास ही स्थित मंदिर की ख्याति पूरे प्रदेश में है। मंदिर की स्थापना के पीछे का किस्सा भी रोचक है जो भक्तों की श्रद्धा का कारण भी है। दरअसल, पं. मुरलीधर व्यास को यजमानों के घर पूजन कराने में एक नारियल मिला। मुरलीधर ने उस नारियल को फोडऩे के लिए उसका जूट (जटा) हटाना शुरू किया तो उसमें बीज जैसी कोई आकृति दिखाई दी। उन्होंने बड़ा रावला के वैद्य रामचन्द्र जमींदार को नारियल दिखाया। रामचन्द्र ने बताया कि इस नारियल में बड़ा बीज बन रहा है। यह बीज यदि किसी गर्भवती महिला को खिलाया जाए तो बच्चे की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होगा।
शुभ मुहूर्त में नहीं कर पाए स्थापना
पं. मुरलीधर ने नारियल संभालकर घर में रख लिया। 18 सितंबर 1985 दिन बुधवार को गणेश चतुर्थी थी। गणेशजी की स्थापना का शुभ मुहूर्त 11.45 बजे का था। मुरलीधर हर वर्ष गणेश स्थापना करते थे, लेकिन इस दिन किसी कारणवश वे समय पर मूर्ति नहीं ला पाए। उन्होंने निश्चय किया कि मूर्ति भले नहीं ला पाए लेकिन समय पर यह नारियल फोडक़र गणेश पूजन करेंगे।
बीज में निकल आई सूंड की आकृति
पं. व्यास ने निश्चित समय पर नारियल फोडऩे के लिए हाथ ऊपर किया तो वह ऊपर ही अटक गया। उन्होंने तीन बार प्रयास किया, लेकिन फोड़ नहीं पाए। इसके बाद उन्होंने नारियल को ठीक से देखा तो उसमें जो बीज बन रहा था उसमें सूंड जैसी आकृति महसूस हुई। यह देखकर पं. व्यास ने उसी नारियल को भगवान गणेश के रूप में अपने घर में ही स्थापित कर लिया।
आज भी मूल स्वरूप में है श्रीफल
महेंद्र व्यास ने बताया कि साधारत: नारियल 6 से 8 माह में सूखकर गोल हो जाता है या सड़ जाता है। अगर उसमें बीज बनता है तो वह भी ज्यादा दिन नहीं टिक पाता है। जिस नारियल को एकाक्षी नारियल वाले गणेश के रूप में पूजा जा रहा है, वह नारियल 37 साल पहले जैसा था आज भी वैसा ही है।लोगों की आस्था के चलते यहां पर मंदिर का रूप दे दिया गया है।
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