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इंदौर

फर्जी चेक और आरटीजीएस से निकाल लिए 49 लाख, एनआरआई को लगी चपत

दुबई निवासी एनआरआई के बैंक खाते से तीन बार आरटीजीएस कर 49 लाख की धोखाधड़ी की गई।

इंदौरAug 23, 2017 / 11:35 am

अर्जुन रिछारिया

fake cheque and rtgs bank crime case of indore
इंदौर. दुबई निवासी एनआरआई के बैंक खाते से तीन बार आरटीजीएस कर 49 लाख की धोखाधड़ी की गई। इसी तरह रिटायर्ड डीएसपी को चिट फंड कंपनी ने करीब 30 लाख रुपए की चपत लगाई। पुलिस ने जांच के बाद दोनों मामलों में केस दर्ज किया है।

मल्हारगंज टीआई पवन सिंघल के मुताबिक, एनआरआई अब्बास अली बड़वानीवाला का बैंक ऑफ बड़ौदा की सीतलामाता बाजार में अकाउंट है। उनके रिश्तेदार ने बैंक आकर बताया कि अब्बास अली के बैंक खाते से बड़ी राशि निकल गई है। जांच में पता चला कि मालेगांव की बैंक शाखा में निमेष जैन व एक फर्म के नाम पर तीन बार आरटीजीएस के माध्यम से पैसा ट्रांसफर हुआ है। करीब 49 लाख 9 हजार रुपए की राशि ट्रांसफर कर ली गई जबकि फरियादी ने किसी को आरटीजीएस नहीं किया। बैंक मैनेजर ने डीआईजी की जनसुनवाई में शिकायत की। पुलिस जांच में शिकायत सही पाई गई। बैंक मैनेजर की शिकायत पर केस दर्ज किया है।

दूसरा मामला सदरबाजार थाने में दर्ज किया गया है। टीआई आरके सिंह के मुताबिक रिटायर्ड डीएसपी केपी वर्मा की शिकायत पर विश्वमित्र इंडिया परिवार नाम की चिट फंड कंपनी के अफसर मनोज कुमार, शिवप्रताप, रणविजयसिंह और गोविंद के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। केपी वर्मा ने कंपनी में करीब 30 लाख रुपए का निवेश किया था। कंपनी ने ढाई साल में राशि लौटाने का दावा किया था. लेकिन बाद में मुकर गई। वर्मा के अन्य परिचित ने भी लाखों रुपए कंपनी में जमा किए थे। दोनों मामलों में पुलिस जांच कर रही है।
और इधर नवरात्र में पैसों के दुरुपयोग की याचिका खारिज
नागदा नगर परिषद द्वारा नियमों की अनदेखी करते हुए क्षेत्र में नवरात्र महोत्सव आयोजित कर सरकारी पैसों का दुरुपयोग करने को लेकर दायर की गई जनहित याचिका कोर्ट ने जनहित का मुद्दा नहीं मानते हुए खारिज कर दी है। कोर्ट ने इसके साथ ही कोर्ट को गलत जानकारी देने की बात कहते हुए याचिकाकर्ता पर पांच हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। एडवोकेट लोकेश भटनागर के मुताबिक नागदा के सुबोध स्वामी और अभय चोपड़ा ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। उनका कहना था, नागदा नगर परिषद ने नवरात्र महोत्सव के नाम पर नियमों की अनदेखी करते हुए सरकारी पैसा खर्च किया है। करीब एक साल तक याचिका चलने के बाद कोर्ट ने माना है, याचिकाकर्ता ने कोर्ट में जो जानकारी पेश की है वो आधारहीन है।

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