scriptExclusive Talk : मैंने भी आठ बार चुनाव लड़े, लेकिन भाषा की मर्यादा कभी नहीं तोड़ी : सुमित्रा महाजन | Exclusive Interview of Sumitra mahajan by Patrika | Patrika News
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Exclusive Talk : मैंने भी आठ बार चुनाव लड़े, लेकिन भाषा की मर्यादा कभी नहीं तोड़ी : सुमित्रा महाजन

लोकसभा अवसान के बाद लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का पहला इंटरव्यू…पेश हैं मुख्य अंश।

इंदौरMay 16, 2019 / 10:41 am

shailendra tiwari

sumitra mahajan

Exclusive Talk : मैंने भी आठ बार चुनाव लड़े, लेकिन भाषा की मर्यादा कभी नहीं तोड़ी : सुमित्रा महाजन

शैलेंद्र तिवारी @ इंदौर. नई लोकसभा के गठन के लिए चुनावी प्रक्रिया जारी है। देश में सियासी माहौल गर्म है। पूर्व प्रधानमंत्रियों पर भी सवाल उछाले जा रहे हैं। इस सबके बीच लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन कहती हैं, अगर आप बोलते हैं तो सुनने की क्षमता भी रखनी चाहिए। जो नीति निर्धारक हैं, उनके सवाल पूछे जाएंगे। उनका कहना है कि राहुल गांधी को भी समझ लेना चाहिए कि राजीव गांधी और इंदिरा गांधी सिर्फ उनके पिता या दादी नहीं थे। वे देश के प्रधानमंत्री भी थे। उन पर सवाल उठेंगे और पूछे भी जाएंगे। लोकसभा अवसान के बाद लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का पहला इंटरव्यू…पेश हैं मुख्य अंश।
Q : आखिर ताई को क्यों सामने आकर कहना पड़ा, मैं चुनाव नहीं लडूंगी?
A : 75 की हो गई हूं। साफ बोला था कि मैं चुनाव नहीं लडऩा चाहती। सामने से कोई बोलता कि रुको ताई…बता देंगे। इंतजार करती न। मैंने कहा था मोदीजी से कि पूछो अमितजी को कि क्या करना है? शायद उन्हें संकोच हो गया हो कि ताई को कैसे बोलें, आखिर ताई बड़ी हैं।
Q : लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के साथ पार्टी ने टिकट काटने में संकोच क्यों नहीं किया?
A : वे मेरे भी वरिष्ठ हैं। मैंने उनके साथ काम किया। उनके साथ बराबरी नहीं हो सकती। उनको लगता है कि ताई तो अपनी है, कितना अच्छा लोकसभा संभाल रही है। जब मैंने बोला था तब अमित शाह सामने ही बैठे थे। मैंने कहा कि सबको बता दिया, मुझे क्या…75 की हो गई हूं, क्या करना है? उस समय वह हंसे और बोले कि बताऊंगा।
Q : आप बेटे मंदार-मिलिंद और बहू में से किसको उत्तराधिकारी चाहती थीं?
A : मिलिंद ने तो कभी राजनीति की तरफ रुझान नहीं किया। लोग कहते हैं कि मंदार को पार्टी टिकट क्यों नहीं देती है? दो बार लोगों ने उसको विधायक के लिए भी प्रयास किए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। मंदार पिछड़ता चला गया, उसका होना चाहिए। मैं हमेशा कहती हूं , नेता का बेटा है, इसलिए उसको नकारो मत। अगर क्षमता है तो उसे देना चाहिए।
Q : राहुल गांधी मोदी पर हमला कर रहे हैं और मोदी पूर्व प्रधानमंत्रियों की प्रतिमा खंडित करने का प्रयास कर रहे हैं, उसे किस तरह से देखती हैं?
A : ऐसा नहीं होना चाहिए, मैं इस मत की नहीं हूं। मैंने आठ चुनाव लड़े। कभी विपक्ष के उम्मीदवार को लेकर भाषा की मर्यादा नहीं खोई है। एक बात बताओ, एक व्यक्ति को लेकर आप पहले दिन से कुछ भी बोलते रहो, आखिर वह कब तक खामोश रहेगा। प्रधानमंत्री सम्मान के हकदार हैं। गुजरात के समय तो सब कुछ सहन किया। अब भी आप उनको लेकर रिस्पेक्ट नहीं दिखा रहे। मुझे कहना पड़ा, प्रधानमंत्री बने हैं तो बने हैं न, सम्मान तो करना पड़ेगा। ऐसा नहीं चलेगा। पहले भी एक दूसरे पर बोलते थे, लेकिन बातें नीतिगत होती थीं। नेहरूजी के खिलाफ भी बोला गया, लेकिन हमेशा उनकी पॉलिसी पर बात हुई। बार-बार आप किसी को व्यक्तिगत तौर पर बोलोगे तो सुनने की क्षमता भी रखनी होगी। यह देखना होगा कि यह शुरुआत आखिर कहां से हुई। यह नहीं होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से हो रहा है।
Q : राहुल ने कहा कि मोदी मेरे पिता और दादी का अपमान करते हैं, लेकिन मैं कभी उनके माता-पिता के खिलाफ नहीं बोलूंगा।
A : मोदी के माता-पिता राजनीति में कुछ हैं ही नहीं, तो आप उनके खिलाफ बोलेंगे क्या? मोदी के पिता पीएम रहे होते और गलतियां हुई होती तो क्या आप जिक्र नहीं करते। राहुल के दादा पर कोई कुछ बोलता है क्या, वो भी राजनीति में रहे थे। राहुल को समझ लेना चाहिए कि राजीव और इंदिरा सिर्फ पिता और दादी ही नहीं थीं। वे पीएम भी थे। उनसे सवाल पूछे जाएंगे और मुद्दे उठेंगे तो उनकी गलत नीतियों पर भी सवाल उठेंगे। कोई भी पीएम नीति निर्धारक होगा, उससे सवाल होंगे ही।
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Q : मोदी ने कहा कि ताई अकेली ऐसी नेता हैं जो पार्टी के भीतर उनको डांट सकती हैं। इसके राजनीतिक मायने क्या हैं?
A : ये तो अपनेपन के दायरे हैं और प्रेम के हैं। हमने जितना साथ काम किया, उसी का प्रभाव है। साथ में काम किया। साफ मन से मैं जो कुछ बोलती हूं तो उसे वह पसंद करते हैं। उम्र में बड़ी हूं। संसदीय परंपराओं के हिसाब से उनसे ज्यादा मेरा अनुभव है। उनसे हमेशा एक दोस्ती रही। कई बार उनसे पूछती हूं कि घर कितनी बार जाते हो, घर के लोगों के नाम भी पहचानते हो कि नहीं।
Q : लोकसभा मेें विपक्ष केे आरोप रहे कि आप भाजपा कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रही हैं?
A : स्पीकर की अपनी भूमिका होती है। उसे विपक्ष को बोलने का अधिकार देना है, क्योंकि यह उसका हक है। सत्ता पक्ष के बिल भी पास होने चाहिए। इसके लिए भी रास्ते निकालने होते हैं। हमारी मजबूरी को भी समझना होगा, शायद आगे समझेंगे। परेशानी यह थी कि मजबूत विपक्ष नहीं था और उनका नेता भी नहीं था। हर पार्टी बोलती थी कि मेरी सुनो। अब सबको संभालते हुए मुझे सत्ता पक्ष को भी समय देना था।
Q : ऐसी विपरीत परिस्थितियों में क्या जरूरी नहीं है कि विशेषाधिकार से नेता प्रतिपक्ष का चयन हो?
A : सदन रूल बुक से चलता है। मैंने खडग़े को सम्मान दिया, लेकिन अकेले उनसे काम नहीं चलता था। मुझे बिल पास कराने के लिए टीएमसी, तैलंगाना से लेकर बीजू जनता दल से भी बात करनी पड़ती थी। दस फीसदी का नियम है, जो किसी के पास नहीं थे। कांग्रेस जब सत्ता में थी तो उन्होंने विपक्ष का पद किसी को नहीं दिया था। रही बात रूल बुक में बदलाव की तो सवाल यही है कि आंकड़ा प्रबल होना चाहिए। मैं किसी को दर्जा दे भी दूं तो क्या दूसरे लोग उसे मानने को तैयार होते? विपक्ष उनको नेता भी तो माने। विपक्ष में कोई उन्हें अपना नेता मानने को तैयार नहीं था।
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Q : क्या ताई की नाराजगी को दूर करने के लिए मोदी ने यह बोला?
A : उनको मालूम है कि ताई नाराज हैं ही नहीं। आपको क्या लगता है कि हमारे बीच में कोई बात नहीं हुई है क्या? मैं बीच में दिल्ली गई थी, तब बात की थी। अब मेरी चुनाव की इच्छा नहीं है। मुझे जवाब मिला था कि अभी इंतजार करो, कुछ मत बोलो, बता देंगे, इसीलिए कुछ देर हुई।
Q : आखिर मध्यप्रदेश में आपके पार्टी सांसद ही खुलकर विरोध का झंडा उठाए हैं?
A : कहां विद्रोह… कुछ हलचल होती है, खानदानी सी। यह राजनीति में होती है और होनी भी चाहिए। मैं शुरू से राजनीतिक नहीं हूं। मैं शुरू से बोलती थी कि क्या है जो पार्टी दे तो दे… नहीं दे तो क्या है। लेकिन मेरे वरिष्ठ कहते थे कि राजनीति में महत्वाकांक्षा रखनी चाहिए। अब यह सबकी होती है। जब तक मैं चुनाव लडऩे के लिए सामने थी, कोई सामने नहीं आया, लेकिन जब मैंने कहा कि मैं चुनाव नहीं लड़ रही हूं, आप प्रयास करो तो दस लोग आ गए।
Q : सदन में परंपरा रही है कि दिवंगत और सदन के गैर सदस्यों पर बात नहीं होती है। क्या राजनीतिक भाषणों में भी यही गरिमा नहीं होनी चाहिए?
A : यह इतिहास है। सभी को मालूम होना चाहिए कि किस बात पर क्या हुआ है। आज कोई छिपी-छिपाई बातें तो बोल नहीं रहा है। सब कुछ सामने है… और फिर जो किया है वह सामने आने में बुराई क्या है? हां, लेकिन एक बात है कि इस बात को कितनी कटुता से कौन बोल रहा है। इतिहास के पन्नों को सही तरीके से नहीं उठाने के कारण भी हमने नुकसान उठाया है।

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