A : 75 की हो गई हूं। साफ बोला था कि मैं चुनाव नहीं लडऩा चाहती। सामने से कोई बोलता कि रुको ताई…बता देंगे। इंतजार करती न। मैंने कहा था मोदीजी से कि पूछो अमितजी को कि क्या करना है? शायद उन्हें संकोच हो गया हो कि ताई को कैसे बोलें, आखिर ताई बड़ी हैं।
A : वे मेरे भी वरिष्ठ हैं। मैंने उनके साथ काम किया। उनके साथ बराबरी नहीं हो सकती। उनको लगता है कि ताई तो अपनी है, कितना अच्छा लोकसभा संभाल रही है। जब मैंने बोला था तब अमित शाह सामने ही बैठे थे। मैंने कहा कि सबको बता दिया, मुझे क्या…75 की हो गई हूं, क्या करना है? उस समय वह हंसे और बोले कि बताऊंगा।
A : मिलिंद ने तो कभी राजनीति की तरफ रुझान नहीं किया। लोग कहते हैं कि मंदार को पार्टी टिकट क्यों नहीं देती है? दो बार लोगों ने उसको विधायक के लिए भी प्रयास किए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। मंदार पिछड़ता चला गया, उसका होना चाहिए। मैं हमेशा कहती हूं , नेता का बेटा है, इसलिए उसको नकारो मत। अगर क्षमता है तो उसे देना चाहिए।
A : ऐसा नहीं होना चाहिए, मैं इस मत की नहीं हूं। मैंने आठ चुनाव लड़े। कभी विपक्ष के उम्मीदवार को लेकर भाषा की मर्यादा नहीं खोई है। एक बात बताओ, एक व्यक्ति को लेकर आप पहले दिन से कुछ भी बोलते रहो, आखिर वह कब तक खामोश रहेगा। प्रधानमंत्री सम्मान के हकदार हैं। गुजरात के समय तो सब कुछ सहन किया। अब भी आप उनको लेकर रिस्पेक्ट नहीं दिखा रहे। मुझे कहना पड़ा, प्रधानमंत्री बने हैं तो बने हैं न, सम्मान तो करना पड़ेगा। ऐसा नहीं चलेगा। पहले भी एक दूसरे पर बोलते थे, लेकिन बातें नीतिगत होती थीं। नेहरूजी के खिलाफ भी बोला गया, लेकिन हमेशा उनकी पॉलिसी पर बात हुई। बार-बार आप किसी को व्यक्तिगत तौर पर बोलोगे तो सुनने की क्षमता भी रखनी होगी। यह देखना होगा कि यह शुरुआत आखिर कहां से हुई। यह नहीं होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से हो रहा है।
A : मोदी के माता-पिता राजनीति में कुछ हैं ही नहीं, तो आप उनके खिलाफ बोलेंगे क्या? मोदी के पिता पीएम रहे होते और गलतियां हुई होती तो क्या आप जिक्र नहीं करते। राहुल के दादा पर कोई कुछ बोलता है क्या, वो भी राजनीति में रहे थे। राहुल को समझ लेना चाहिए कि राजीव और इंदिरा सिर्फ पिता और दादी ही नहीं थीं। वे पीएम भी थे। उनसे सवाल पूछे जाएंगे और मुद्दे उठेंगे तो उनकी गलत नीतियों पर भी सवाल उठेंगे। कोई भी पीएम नीति निर्धारक होगा, उससे सवाल होंगे ही।
A : ये तो अपनेपन के दायरे हैं और प्रेम के हैं। हमने जितना साथ काम किया, उसी का प्रभाव है। साथ में काम किया। साफ मन से मैं जो कुछ बोलती हूं तो उसे वह पसंद करते हैं। उम्र में बड़ी हूं। संसदीय परंपराओं के हिसाब से उनसे ज्यादा मेरा अनुभव है। उनसे हमेशा एक दोस्ती रही। कई बार उनसे पूछती हूं कि घर कितनी बार जाते हो, घर के लोगों के नाम भी पहचानते हो कि नहीं।
A : स्पीकर की अपनी भूमिका होती है। उसे विपक्ष को बोलने का अधिकार देना है, क्योंकि यह उसका हक है। सत्ता पक्ष के बिल भी पास होने चाहिए। इसके लिए भी रास्ते निकालने होते हैं। हमारी मजबूरी को भी समझना होगा, शायद आगे समझेंगे। परेशानी यह थी कि मजबूत विपक्ष नहीं था और उनका नेता भी नहीं था। हर पार्टी बोलती थी कि मेरी सुनो। अब सबको संभालते हुए मुझे सत्ता पक्ष को भी समय देना था।
A : सदन रूल बुक से चलता है। मैंने खडग़े को सम्मान दिया, लेकिन अकेले उनसे काम नहीं चलता था। मुझे बिल पास कराने के लिए टीएमसी, तैलंगाना से लेकर बीजू जनता दल से भी बात करनी पड़ती थी। दस फीसदी का नियम है, जो किसी के पास नहीं थे। कांग्रेस जब सत्ता में थी तो उन्होंने विपक्ष का पद किसी को नहीं दिया था। रही बात रूल बुक में बदलाव की तो सवाल यही है कि आंकड़ा प्रबल होना चाहिए। मैं किसी को दर्जा दे भी दूं तो क्या दूसरे लोग उसे मानने को तैयार होते? विपक्ष उनको नेता भी तो माने। विपक्ष में कोई उन्हें अपना नेता मानने को तैयार नहीं था।
A : उनको मालूम है कि ताई नाराज हैं ही नहीं। आपको क्या लगता है कि हमारे बीच में कोई बात नहीं हुई है क्या? मैं बीच में दिल्ली गई थी, तब बात की थी। अब मेरी चुनाव की इच्छा नहीं है। मुझे जवाब मिला था कि अभी इंतजार करो, कुछ मत बोलो, बता देंगे, इसीलिए कुछ देर हुई।
A : कहां विद्रोह… कुछ हलचल होती है, खानदानी सी। यह राजनीति में होती है और होनी भी चाहिए। मैं शुरू से राजनीतिक नहीं हूं। मैं शुरू से बोलती थी कि क्या है जो पार्टी दे तो दे… नहीं दे तो क्या है। लेकिन मेरे वरिष्ठ कहते थे कि राजनीति में महत्वाकांक्षा रखनी चाहिए। अब यह सबकी होती है। जब तक मैं चुनाव लडऩे के लिए सामने थी, कोई सामने नहीं आया, लेकिन जब मैंने कहा कि मैं चुनाव नहीं लड़ रही हूं, आप प्रयास करो तो दस लोग आ गए।
A : यह इतिहास है। सभी को मालूम होना चाहिए कि किस बात पर क्या हुआ है। आज कोई छिपी-छिपाई बातें तो बोल नहीं रहा है। सब कुछ सामने है… और फिर जो किया है वह सामने आने में बुराई क्या है? हां, लेकिन एक बात है कि इस बात को कितनी कटुता से कौन बोल रहा है। इतिहास के पन्नों को सही तरीके से नहीं उठाने के कारण भी हमने नुकसान उठाया है।