विभाग की टीम सबसे पालदा स्थित नेचर फ्रेश कोल्ड स्टोरेज पहुंची। यहां पर बड़ी मात्रा में केलों को स्टोरेज में रख कर पकाया जा रहा था। इसके बाद टीम ने नागपाल कोल्ड स्टोरेज पर भी तलाशी अभियान चलाया। टीम को यहां से केले पकाने के लिए एक स्प्रे का इस्तेमाल होता मिला। इस स्प्रे से एक बार में सात से आठ टन तक केले पकाए जा सकते हैं। इसके अलावा टीम ने पालदा के ही खंडेलवाल कम्पाउंड स्थित एक गोदाम की तलाशी मिली। टीम यहां पर कार्बाइड से केले पकाए जाने की सूचना पाकर तलाशी करने पहुंची थी। हालांकि तीनों ही गोदामों में कर्बाइट की जगह केलों को पकाने में इथीलीन नामक केमिकल का इस्तेमाल होना बताया गया। टीम ने उक्त कैमिकल के सेंपल लेकर जांच की जा रही है।
इथीलीन का हो रहा था स्प्रे टीम की तलाशी के दौरान सभी गोदामों पर बड़ी मात्रा में कच्चे केलों का संग्रहण होता मिला। इन केलों को पकाने में इथिलीन नामक केमिकल का प्रयोग हो रहा था। उक्त केमिकल के २५० रुपए की एक बॉटल में ही ७ से ८ टन तक केलों को पकाने की क्षमता होती है। टीम द्वारा की गई पूछताछ में गोदाम संचालकों ने बताया कि फिल्हाल केलों को पकाने में आमतौर पर इसी केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है।
कार्बाइड से सस्ता है इथीलीन पूछताछ में यह भी पता चला कि कार्बाइड की तुलना में इथीलीन केमिकल अधिक सस्ता और किफायती होता है। इसके चलते अधिकतर फल स्टॉकिस्ट इसी केमिकल का उपयोग फलों को पकाने में कर रहे हैं। इसके एक बार स्पे्र के बाद दो दिन में ही केलों का रंग पककर हरे से पीला हो जाता है। कुछ जगहों पर स्प्रे न करते हुए पानी में इसका घोल बनाकर उपयोग किया जाता है। इस घोल में केले के गुच्छों को एक बार ढूबोकर रख देने से ही केले का दो दिन में रंग बदल जाता है।
फलों को पकाने में कार्बाइड के इस्तेमाल की सूचना पर तीन गोदामों की तलाशी ली गई। इस दौरान सभी जगहों पर इथीलीन केमिकल का इस्तेमाल होता पाया गया। खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा उक्त केमिकल के उपयोग की अनुमति दी गई है, लेकिन यह वहीं केमिकल है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए हम केमिकल का सेंपल जांच के लिए लिया है।
मनीष स्वामी, मुख्य खाद्य सुरक्षा अधिकारी