रविवार को यह विचार रविवार को पन्यास प्रवर राजरत्न विजय महाराज ने तिलकनगर स्थित श्री तिलकेश्वर पाश्र्वनाथ जैन मंदिर पर चातुर्मास के प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने मैं शब्द के मनुष्य जीवन में हो रहे गलत प्रभाव की सहादरण व्याख्या की।
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कैसी भी परिस्थिति हो भाव वैसे रखना मनुष्य के हाथ में है। वहीं किसी भी कार्य में आपमें मैं का भाव है तो माने मलिन पुण्य का उदय हो रहा है। जीवन में आप स्वयं परेशान नहीं होते तब तक आप किसी को परेशान नहीं कर सकते। संसार में अपेक्षा अनंत है वहीं अपेक्षा होना दोष नहीं है। अपेक्षा के गर्भ में आग्रह का भाव होता है। लेकिन अपेक्षा को संतुष्ट करने से वो अधिक बढ़ती है और अधिक बलवान हो जाती है। यदि जीवन में आपने स्वयं को समझ लिया तो मैं, बैर, अपेक्षा और आग्रह कोई भी आपके जीवन में आग नहीं लगा सकते। क्योंकि मनुष्य का मैं भाव हमेशा चाहता है कि सबको मेरी हां में हां कहना है।
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आज के प्रवचन का सार
– किसी के भी प्रति अरुचि का भाव वैरभाव का बीज है।
– हमेशा स्वतंत्रता से जीने के साथ साथ सोच भी स्वतंत्र रखो।
– आप ही आपके दुश्मन हो।
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संघ मिला तो वह भाग्यशाली
महाराजश्री ने कहा संसार में किसी को यदि संघ मिला है तो वो भाग्यशाली है। लेकिन संघ मिलने के बाद भी उसमें संघ की भावना नहीं है तो अगले जन्म में उसे वो संघ मिलना भी मुश्किल है। अशुद्धि में जाना या विशुद्धि में जाना यह मनुष्य के हाथ में ही है। संसार में आप अपने मित्र बन जाओ, सारा संसार आपका मित्र बन जाएगा।
प्रवचन के अंत में प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम किया। इसमें उन्होंने गत रविवार हुए प्रवचन पर आधारित प्रश्न उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं से किए और सही उत्तर देने वालों को प्रभावना भी भेंट की। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे। वहीं रविवार को प्रात: बाल पूजन संस्कार और दोपहर में संस्करण शिविर भी आयोजित हुए। मंदिर ट्रस्ट के कैलाश सालेचा ने बताया चातुर्मास प्रवचन प्रतिदिन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे हैं।
अहंकार, शत्रुता की गठानों को खोल डालें
राष्ट्रसंत रत्नसुंदर सूरीश्वर ने रविवार को मोहता भवन रेसकोर्स रोड पर पुण्य कलश तप महोत्सव की धर्मसभा में भक्तों को कहा, हमने मन में इतनी गठानें बांध रखी हैं कि भगवान की वाणी व जीवन को संवारने के मंत्र अंदर प्रवेश नहीं कर पाते हैं। इन अहंकार व दुश्मनी की गांठों को खोलने का वक्त आ गया है। जब तक जीवन में मैत्री का गुण नहीं आएगा, भक्ति भी प्रकट नहीं हो पाएगी। हम सारे जगत के जीवों के दोष दूर नहीं कर सकते लेकिन उन सबसे प्रेम तो कर ही सकते हैं।
प्रभु भक्ति में सब कर दें न्योछावर
भगवान की भक्ति में यदि सब कुछ न्योछावर करना पड़े तो पीछे नहीं रहना चाहिए। धर्म व संस्कार के साथ उपकार की प्रवृत्ति हो तो जीवन में कभी दरिद्रता नहीं आती। रविवार को कृष्णगिरि पीठाधिपति डॉ. वसंत विजय ने ह्रींकारगिरि तीर्थ धाम में मंदी के दौर में तेजी का सीक्रेट फार्मूला विषय परप्रवचन में यह बात कही।