क्यों जरूरी है
जो व्यक्ति गंभीर रूप से जन जाते हैं या किसी दुर्घटना में घायल हो जाते हैं उनके लिए एक नई त्वचा की जरुरत होती है जिससे उनका इलाज हो सके। डायबिटिक अल्सर के रोगियों को भी क्लीनिंग और ड्रेसिंग के लिए त्वचा की आवश्यकता होती है। नेत्रदान मरने के दो घंटे के भीतर किया जाना जरूरी है, जबकि त्वचा तो मरने के 12 घंटे बाद तक दान की जा सकती है। यदि मृत शरीर को कोल्ड स्टोरेज में रखा जाए तो यह अवधि 24 घंटे तक बढ़ सकती है। हमारे देश में व्यावसायिक रूप से जेनोग्राफ्ट (सुअर की त्वचा) उपलब्ध नहीं है। कृत्रिम त्वचा (बायोसिंथेटिक स्किन सब्स्टीटय़ूट) अत्यधिक मंहगी होने के कारण अधिकतर जले हुए मरीज इसका खर्च नहीं उठा पाते। इसलिए हमारे देश में जरूरतमंद मरीजों के लिए सिर्फ एलोग्राफ्ट का ही विकल्प बचता है।
जो व्यक्ति गंभीर रूप से जन जाते हैं या किसी दुर्घटना में घायल हो जाते हैं उनके लिए एक नई त्वचा की जरुरत होती है जिससे उनका इलाज हो सके। डायबिटिक अल्सर के रोगियों को भी क्लीनिंग और ड्रेसिंग के लिए त्वचा की आवश्यकता होती है। नेत्रदान मरने के दो घंटे के भीतर किया जाना जरूरी है, जबकि त्वचा तो मरने के 12 घंटे बाद तक दान की जा सकती है। यदि मृत शरीर को कोल्ड स्टोरेज में रखा जाए तो यह अवधि 24 घंटे तक बढ़ सकती है। हमारे देश में व्यावसायिक रूप से जेनोग्राफ्ट (सुअर की त्वचा) उपलब्ध नहीं है। कृत्रिम त्वचा (बायोसिंथेटिक स्किन सब्स्टीटय़ूट) अत्यधिक मंहगी होने के कारण अधिकतर जले हुए मरीज इसका खर्च नहीं उठा पाते। इसलिए हमारे देश में जरूरतमंद मरीजों के लिए सिर्फ एलोग्राफ्ट का ही विकल्प बचता है।
इसलिए पड़ती है जरूरत
जब मरीज के शरीर के अन्य भागों से त्वचा लिया जाना संभव न हो या ऑटोग्राफ्ट के बाद घावों का आकार बढऩे की आशंका हो, तब मृत्त मानव की त्वचा का विकल्प घावों को बंद करके मरीज की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जब मरीज के शरीर के अन्य भागों से त्वचा लिया जाना संभव न हो या ऑटोग्राफ्ट के बाद घावों का आकार बढऩे की आशंका हो, तब मृत्त मानव की त्वचा का विकल्प घावों को बंद करके मरीज की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आप भी ऐसे कर सकते हैं त्वचा दान
स्किन एलोग्राफ्ट अंग प्रत्यारोपण से अलग है, क्योंकि यहां त्वचा अस्थायी सुरक्षा देती है और प्राप्तकर्ता के शरीर में प्रत्यारोपित अंग की तरह हमेशा नहीं रहती। इसलिए ब्लड ग्रुप की जांच और एचएलए मैचिंग की आवश्यकता नहीं होती है। कोई भी व्यक्ति जो 18 साल से बड़ा हो, त्वचा दान कर सकता है। इस त्वचा को सवरेत्तम अनुकूल परिस्थितियों में प्रोसेस और प्रिजर्व किया जाता है, जहां से जरूरतमंद व्यक्ति के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है।
स्किन एलोग्राफ्ट अंग प्रत्यारोपण से अलग है, क्योंकि यहां त्वचा अस्थायी सुरक्षा देती है और प्राप्तकर्ता के शरीर में प्रत्यारोपित अंग की तरह हमेशा नहीं रहती। इसलिए ब्लड ग्रुप की जांच और एचएलए मैचिंग की आवश्यकता नहीं होती है। कोई भी व्यक्ति जो 18 साल से बड़ा हो, त्वचा दान कर सकता है। इस त्वचा को सवरेत्तम अनुकूल परिस्थितियों में प्रोसेस और प्रिजर्व किया जाता है, जहां से जरूरतमंद व्यक्ति के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है।
इन बीमारियों से ग्रसित लोग नहीं कर सकते त्वचा दान
एचआईवी, हिपेटाइटिस बी, हिपेटाइटिस सी जैसी संक्रमित बीमारी से पीडि़त हैं। ऐसे लोगों की त्वचा को भी दान योग्य नहीं माना जाता, जिन्हें कोई गंभीर त्वचा रोग हो, जैसे त्वचा का कैंसर, स्क्लेरोडर्मा, सेप्टीसिमिया आदि।
एचआईवी, हिपेटाइटिस बी, हिपेटाइटिस सी जैसी संक्रमित बीमारी से पीडि़त हैं। ऐसे लोगों की त्वचा को भी दान योग्य नहीं माना जाता, जिन्हें कोई गंभीर त्वचा रोग हो, जैसे त्वचा का कैंसर, स्क्लेरोडर्मा, सेप्टीसिमिया आदि।
शरीर के इस भाग की त्वचा ली जाती है
त्वचा दान के लिए शरीर के कुछ ही अंग ऐसे होते हैं जहां से त्वचा ली जा सकती है। प्रत्यारोपण के लिए प्रमुख रूप से पैरों, दोनों जांघों, नितंबों और कमर की त्वचा ली जाती है।
त्वचा दान के लिए शरीर के कुछ ही अंग ऐसे होते हैं जहां से त्वचा ली जा सकती है। प्रत्यारोपण के लिए प्रमुख रूप से पैरों, दोनों जांघों, नितंबों और कमर की त्वचा ली जाती है।
ऐसे होता है त्वचा का उपयोग
त्वचा को निकालने के बाद सबसे पहले उसे स्किन बैंक में जांच के लिए भेजा जाता है। फिर उसकी प्रोसेसिंग की जाती है। उसके बाद त्वचा की स्क्रीनिंग की जाती है और निर्णय लिया जाता है कि उसे जरूरतमंद व्यक्ति में प्रत्यारोपित किया जा सकता है या नहीं। जब यह त्वचा मरीज को लगाई जाती है तो यह अस्थायी ड्रेसिंग की तरह काम करती है। चार सप्ताह के बाद शरीर इसे अस्वीकार कर देता है।
त्वचा को निकालने के बाद सबसे पहले उसे स्किन बैंक में जांच के लिए भेजा जाता है। फिर उसकी प्रोसेसिंग की जाती है। उसके बाद त्वचा की स्क्रीनिंग की जाती है और निर्णय लिया जाता है कि उसे जरूरतमंद व्यक्ति में प्रत्यारोपित किया जा सकता है या नहीं। जब यह त्वचा मरीज को लगाई जाती है तो यह अस्थायी ड्रेसिंग की तरह काम करती है। चार सप्ताह के बाद शरीर इसे अस्वीकार कर देता है।
रोटरी क्लब चला रहा जागरुकता अभियान
रोटरी क्लब देशभर में त्वचा दान जीवन दान अभियान चलाएगा। इसी कड़ी में इंदौर में 13 जनवरी को जावरा कंपाउंड स्थित महादेवी पुस्तकालय में एक सेमिनार का आयोजन शाम 6.30 बजे से होगा। इस सेमिनार में मुंबई के डॉ. सत्या अग्रवाल और अन्य विशेषज्ञ शामिल होंगे। इस सेमिनार में त्वचा दान का महत्व, त्वचा दान की जरूरत और त्चचा के जरिए जीवन बचाने के बारे में जानकारी दी जाएगी। ये कार्यक्रम संस्था आनंद गोष्ठी के सहयोग से होगा।
रोटरी क्लब मुंबई के अध्यक्ष राजेश मोदी, रोटरी क्लब इंदौर की अध्यक्ष अर्चना राजकोटिया और आनंद गोष्ठी के गोविंद मालू ने बताया कि देश में हर साल करीब एक लाख 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत जलने से होती है। यह आंकड़ा सडक़ दुर्घटना में मरने वालों की संख्या के बाद दूसरे नंबर पर है। करीब 80 फीसदी लोगों को त्वचा दान के जरिए बचाया जा सकता है। एेसा तभी हो सकेगा जब स्किन बैंक में पर्याप्त स्किन हो। दुर्भाग्य से लोगों को त्वचा दान और स्किन बैंक के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।
रोटरी क्लब देशभर में त्वचा दान जीवन दान अभियान चलाएगा। इसी कड़ी में इंदौर में 13 जनवरी को जावरा कंपाउंड स्थित महादेवी पुस्तकालय में एक सेमिनार का आयोजन शाम 6.30 बजे से होगा। इस सेमिनार में मुंबई के डॉ. सत्या अग्रवाल और अन्य विशेषज्ञ शामिल होंगे। इस सेमिनार में त्वचा दान का महत्व, त्वचा दान की जरूरत और त्चचा के जरिए जीवन बचाने के बारे में जानकारी दी जाएगी। ये कार्यक्रम संस्था आनंद गोष्ठी के सहयोग से होगा।
रोटरी क्लब मुंबई के अध्यक्ष राजेश मोदी, रोटरी क्लब इंदौर की अध्यक्ष अर्चना राजकोटिया और आनंद गोष्ठी के गोविंद मालू ने बताया कि देश में हर साल करीब एक लाख 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत जलने से होती है। यह आंकड़ा सडक़ दुर्घटना में मरने वालों की संख्या के बाद दूसरे नंबर पर है। करीब 80 फीसदी लोगों को त्वचा दान के जरिए बचाया जा सकता है। एेसा तभी हो सकेगा जब स्किन बैंक में पर्याप्त स्किन हो। दुर्भाग्य से लोगों को त्वचा दान और स्किन बैंक के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।