हम बात बात कर रहे है दिखित परिवार की है। कभी लालबाग पैलेस और अब महू में रहने वाले इस परिवार ने होलकर स्टैट की सेना से शुरुआत की थी। इस सेना में परिवार की तीन पीढिय़ों ने काम किया है। इसके बाद उसका भारतीय सेना में विलय हो गया और परिवार ने गोरखा रेजीमेंट जाइन कर ली। इस परिवार के सबसे बड़े सदस्य रिटायर्ड कर्नल ओमकारसिंह दिखित है। उन्होंने अपने अनुभवों पर एक किताब लिखी है। जो कि हाल ही में छपकर आई है। इस किताब की प्रस्तावना रिटायर्ड जनरल वीके सिंह ने लिखी है।
कर्नल ओमकार सिंह दिखित 98 साल के हो गए और अपनी 100 वे जन्मदिन पर पार्टी करना चाहते है। सेना की बात करते ही उनकी आंखों में एक चमक आ जाती है। बड़े गर्व से बोलते है, वर्तमान सीडीएस बिपिन रावत के पिता के साथ में भी काम किया है। कई मेडल भी जीते और अब वह सारे अपनी पल्टन को दे दिए। जिन्हें पल्टन ही संभाल रही है। सेना के प्रति उनका लगाव इतना है कि अब भी महू छावनी में रहते है। सेना भी उनका उतना ही ध्यान रखती है। सेना की ओर से उन्हें एक व्यक्ति दिया गया है जो कि हर वक्त उनके साथ में रहता है।
यह है परिवार के अफसर
परिवार की बेटी डॉ हेमलता दिखित ने बताया कि वैसे से पांच पीढिय़ों से ज्यादा से उनके यहां सेना में जाने की पंरपरा रही है, लेकिन उनके पास चार पीढिय़ों का ही रिकार्ड है। दादा कैप्टन गोपालसिंह दिखित, लेफट. कर्नल मंगलसिंह दिखित, भाई लेफ्टीनेंट कर्नल औमकारसिंह दिखित, उनसे छोटे मेजर अजीतसिंह दिखित, मेजर रामसिंह दिखित, मेजर रामसिंह के बेटे बिग्रेडियर संजयसिंह दिखित है। वहीं परिवार की पांचवी पीढ़ी संजयसिंह की बेटी भी सेना में जाने के लिए तैयारी कर रही है। वह भी एनसीसी कैडेट है।
बेटियों के परिवार भी सेना में
मेजर रामसिंह के दामाद कर्नल वेणुधरसिंह ने सेना में सेवाएं दी है। उनकी बहनों की बात करे तो बड़ी बहन देवीका पंवार के पति मेजर देवीसिंह, उनके बेटे बिग्रेडियर बसंत पंवार और फिर उनके दोनों बेटे कर्नल हेमंत पंवार और कैप्टन तरुण पंवार, उनसे छोटी बहन जानकीसिंह के बेटे कर्नल विवेकसिंह और दामाद कर्नल शिरिष पांडे भी सेना से ही है।
बड़े भाई की शहादत, छोटे ने ज्वाइन कर ली सेना
डॉ हेमलता के मुताबिक बेटे मेजर अजीत सिंह यूएन के एक मिशन के दौरान शहीद हो गए थे। वह कांगो गए थे। उनके शहीद होने के बारे में परिवार को पता चला इसके कुछ ही दिनों बाद परिवार के सबसे छोटे बेटे मेजर रामसिंह ने भी सेना ज्वाइन कर ली। एक बेटे को खो चुके इस परिवार के मन में कोई चिंता का भाव नहीं आया, बल्की बेटे को प्रेरित किया कि वह भी अपने परिवार की राह पर चले। सभी को सिखाया गया है कि जिस गोली पर जिसका नाम लिखा होता है, उससे बचा नहीं जा सकता। बाकी से डरने की जरुरत नहीं। बचपन से ही सभी को देश सेवा और निडरता का पाठ पढ़ाया जाता है। अंध विश्वास दूर रहने की यह शिक्षा दी गई है। बिल्ली रास्ता काटे तो दूसरों को रोक वह लोग निकल जाते हैं। ताकि दूसरों के मन से भी डर दूर कर सके।
दुशमन की बंदूक छीन किया हमला
मेजर रामसिंह के बेटे रिटायर्ड ब्रिगे. संजयसिंह ने बताया कि पिता बंगलादेश में पाकिस्तानी सेना के साथ में युद्ध कर रहे थे। इस दौरान एक उनकी गन में कोई तकनीकी खराबी आ गई थी। इस पर पर पाकिस्तानी सेना के एक जवान से हथियार छीना और उससे ही युद्ध लड़ा। यह हथियार काफी दिनों तक उनके पास में था। फिर उसे जमा करा दिया गया। पिता जब मोर्चे पर थे तो रेडियों पर सामाचार सुनते थे। घर में सेना का माहौल और रेडियों पर उस दौरान सुनी गई सेना की कार्रवाई से ही मन बना लिया था कि अब सेना में जाना है। अब उनकी बेटी भी इससे प्रभावित होकर तैयारी कर रही है।
बड़े पूछते है किसी रेजीमेंट में जाना है
संजय दिखित ने बताया कि परिवार में सेना का माहौल रहा है। एक पीढि़ दूसरे को यह बता देती है कि कुछ भी फ्री में नहीं मिलता, कमाना पढ़ता है। हर किशोर से यह हीं पूछा जाता है कि उसकी पसंद कौन सी रेजिमेंट है। हर किसी को अपनी रेजीमेंट चुनने दिया जाता है। वैसे परिवार में सभी लोग गोरखा और मराठा रेजीमेंट से ही है। उनसे भी दादी स्कूल के समय से ही पूछने लगी थी, ताकी वह भी अपने बड़ों की तरह एनडीए करे और सेना में भर्ती हो जाए। उन्हें टेक्रोलॉजी में रूची थी। इसके चलते सिग्रलस में जाइन की है।