इंदौर

आजादी के 70 साल बाद भी बंधुआ मजदूरी

सजा नहीं हो पाती दोषियों को, इसलिए डर नहीं- मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष बोले

इंदौरOct 25, 2017 / 05:53 pm

amit mandloi

इंदौर.
हैरानी होती है कि आजादी के 70 साल बाद भी बंधुआ मजदूरी जैसी कुप्रथा पर बात कर रहे हैं। इसके पीछे अहम् वजह है इस अपराध में जो भी शामिल हैं, उन्हें कोर्ट से सजा न होना। पिछले साल छह में से पांच मामलों में दोषियों का छूट जाना और एक को मात्र पेनल्टी की सजा होना बताता है कि दोषियों को सजा का जरा भी खौफ नहीं और इसलिए यह प्रथा अब भी कायम है।

प्रदेश मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष मनोहर ममतानी ने बंधुआ मजदूरी प्रथा पर हुए सेमिनार में कहा कि इसे खत्म करना केवल सरकार का ही दायित्व नहीं है, बल्कि इसके लिए आम लोगों को भी आगे आना होगा। हर स्तर पर जनभागीदारी से इससे मुक्ति पाई जा सकती है। दूसरे विभागों को भी आपसी तालमेल बनाना होगा। यह संज्ञेय अपराध है। किसी भी थाने पर एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है, लेकिन पुलिस पीडि़त को उसी थाने में जाने पर मजबूर करती है, जहां उसे बंधक बनाया गया था। इस तरह के मामलों में ट्रायल में काफी देर होती है और इसके चलते अकसर दोषी छूट जाते हैं। नियोजकों ने बंधुआ मजदूरी के नए तरीके भी खोज लिए हैं। इन तरीकों को समझकर उन्हीं की सोच पर सोचना होगा तभी इसे खत्म किया जा सकता है। सेमिनार में अलग-अलग सेशन में बंधुआ मजदूरी को लेकर बने नियम-अधिनियम, मुक्ति, पुनर्वास, न्यायिक प्रक्रिया जैसे विषयों पर भी चर्चा की गई।

श्रम विभाग ने लांच किया पोर्टल
बंधुआ मजदूरी से मुक्ति के लिए श्रम विभाग ने पोर्टल लिबर्टी लांच किया। इसके साथ ऐसे श्रमिकों के पुनर्वास के लिए श्रम विभाग द्वारा की गई कोशिशों को लेकर एक बुक लेट का भी विमोचन किया गया। श्रमायुक्त शोभित जैन ने बताया कि यह स्मार्ट फोन में एम-श्रम सेवा एप के नाम से डाउनलोड किया जा सकता है। इसके जरिए बंधुआ मजदूरी की शिकायत की जा सकती है। इसमें शिकायत करने वाले का नाम गोपनीय रहेगा और संबंधित स्थान पर विजिलेंस टीम जाकर जांच करेगी। शिकायत सही पाए जाने पर मजदूरों को मुक्त करवाकर उनका पुनर्वास करवाया जाएगा।

सजा होने पर ही मिलेगी पूरी राशि
केंद्रीय श्रम मंत्रालय के डीजी लेबर वेलफेयर रजित पुहनानी ने बताया कि बंधुआ मजदूरों को मुक्ति पर तत्काल 20 हजार रुपए की सहायता दी जाती है। इसके बाद पुरुष श्रमिक को एक लाख, महिला एवं बच्चों को दो लाख रुपए की मदद मिलती है। मगर यह मदद तब मिलेगी, जब मामले के दोषी को सजा हो जाए। नहीं तो शुरुआती राशि से ही संतोष करना होगा। उन्होंने लिबर्टी पोर्टल की लांचिंग को मध्यप्रदेश के श्रम विभाग की उपलब्धि बताते हुए कहा कि केंद्रीय मंत्रालय भी इस पर काम कर रहा है, लेकिन मध्यप्रदेश बाजी मार ले गया और पहला ऐसा राज्य बन गया, जिसने इस तरह के पोर्टल की शुरुआत की।

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