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औसतन 65 लोग गवा रहे हैं जान
बता दें कि, प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में अंतिम संस्कार के लिए 9 मुक्तिधाम हैं। यानी शहर भर के लोगों के अंतिम संस्कार इन्हीं मुक्तिधामों में किये जाते हैं। हालांकि, कोरोना काल में इन मुक्तिधामों के हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। बीती 1 सितंबर से 20 सितंबर के बीच के हेल्थ बुलेटिन पर ही गौर करें तो इन 20 दिनों में शहर में 1306 चिताएं जलीं। यानी रोजाना औसतन 65 लोगों की जान गई। जबकि, सामान्य दिनों में यहां मरने वालों का आंकड़ा 20 से 30 होता था।
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दो चुनौतियों से जूझ रहा है शहर
इस भयावय हालात में इंदौर शहर एक साथ दो चुनौतियों का सामना कर रहा है। एक तरफ तो कोरोना के चलते लोगों को अपनी जान गवानी पड़ रही है। वहीं, दूसरी ओर कोरोना के चलते दूसरी बीमारियों के इलाज के अभाव में भी लोग दम तोड़ रहे हैं। क्योंकि, कोई भी अस्पताल दूसरी बीमारियों का इलाज करने को तैयार ही नहीं है, जिसके चलते मौतों का आंकड़ा इस हद तक आ पहुंचा है।
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श्मशान में भी जगह खाली नहीं
शहर में तेजी से बढ़ रहे कोरोना संक्रमण से मौतों से लोग घबराए हुए हैं। वहीं, उससे ज्यादा घबराहट वाली स्थिति ये है कि कोरोना की मौतों के साथ-साथ ज्यादा दूसरी बीमारियों के चलते इलाज के अभाव में लोग परलोक सिधार रहे हैं। आलम ये है कि 20 दिनों में ही शहर में 1306 चिताएं जल चुकी हैं, वहीं शमशान में भी पहले आओ-पहले पाओ वाली स्थिति बन चुकी है। पश्चिम क्षेत्र स्थित पंचकुइया मुक्तिधाम पर शवों के अंतिम संस्कार का इतना दबाव पड़ने लगा है कि, कई दफा तो श्मशान के कर्मचारियों को मुक्तिधाम में जगह खाली नहीं होने के कारण शवों को दूसरे मुक्तिधामों को लिए भेजना पड़ रहा है।
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पंचकुइया मुक्तिधाम में सबसे ज्यादा चिताएं जलीं
सितंबर के ही 20 दिनों में शहर के 4 शमशान घाटों में 851 चिताएं जलीं। पंचकुइया मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार का आंकड़ा 322 पर पहुंच गया। वहीं, मालवा मिल मुक्तिधाम में भी इसी अवधि में 153 लोगों की चिताएं जलीं। इसके अलावा रामबाग मुक्तिधाम में 162 तो रीजनल पार्क में 214 लोगों का अंतिम संस्कार किया गया। इन मौतों के अलावा इस अवधि में कब्रिस्तान में भी सैकड़ों लोगों को दफनाया गया है।