देशी नस्ल की जगह संकर नस्ल
आंकड़ों के अनुसार, देशी नस्लों की जगह धीरे-धीरे संकर नस्ल के मवेशी ले रहे हैं। पहले बड़ी जमीन वाले अविभाजित परिवार होते थे। अब स्थिति अलग है। किसान चारा नहीं उगा रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों से खरीद रहे हैं। इससे दूध की उत्पादन लागत बढ़ जाती है। अधिकारी धान की खेती में कमी को भी इसका कारण मानते हैं।
आंकड़ों के अनुसार, देशी नस्लों की जगह धीरे-धीरे संकर नस्ल के मवेशी ले रहे हैं। पहले बड़ी जमीन वाले अविभाजित परिवार होते थे। अब स्थिति अलग है। किसान चारा नहीं उगा रहे हैं, बल्कि दूसरे किसानों से खरीद रहे हैं। इससे दूध की उत्पादन लागत बढ़ जाती है। अधिकारी धान की खेती में कमी को भी इसका कारण मानते हैं।
और गिरावट की उम्मीद
2012 की पशुधन जनगणना के अनुसार, जिले में 2,57,415 मवेशी जिसमें देशी, संकर नस्ल की गाय और भैंसें थी। हालांकि 2019 की जनगणना में यह संख्या घटकर 2,52,401 रह गई। पशुपालन और पशु चिकित्सा सेवा विभाग के अधिकारियों का मानना है कि इस महीने शुरू हुए 2024 के सर्वेक्षण में संख्या में और गिरावट आने की उम्मीद है।
2012 की पशुधन जनगणना के अनुसार, जिले में 2,57,415 मवेशी जिसमें देशी, संकर नस्ल की गाय और भैंसें थी। हालांकि 2019 की जनगणना में यह संख्या घटकर 2,52,401 रह गई। पशुपालन और पशु चिकित्सा सेवा विभाग के अधिकारियों का मानना है कि इस महीने शुरू हुए 2024 के सर्वेक्षण में संख्या में और गिरावट आने की उम्मीद है।
आंकड़े एक नजर में जिले में 2007 में 2,29,838 देशी नस्ल के पशु थे, जो 2012 में घटकर 1,13,747 और 2019 में 65,997 रह गए 2007 में जिले में 1,66,771 संकर नस्ल की गायें थीं, जो 2019 में बढ़कर 1,84,572 हो गई
जिले में 2007 में 15,119 भैंसें थीं लेकिन 2012 में यह घटकर 3,700 और 2019 की जनगणना में 1,832 रह गई