प्रवासी राजस्थानियों ने जहां दक्षिण की धरा पर अपनी मेहनत एवं लगन से व्यवसाय की उंचाइयों पर पहुंचाया वहीं अपनी जड़ों से जुड़े रहकर अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज एवं परम्पराओं को जिंदा रखे हुए हैं। बात चाहे रीति-रिवाज या परम्परा की हो या फिर समाजसेवा की। राजस्थानियों का कोई सानी नहीं है। हजारों किमी दूर रहकर भी वे अपनी जड़ों से भी जुड़े हुए हैं। व्यवसाय के साथ ही सामाजिक सरोकारों के माध्यम से भी राजस्थान का नाम रोशन कर रहे हैं। राजस्थानी समाज के लोंगों का कर्नाटक के विकास में दिए योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। कोरोना के समय उनकी सेवाएं जगजाहिर रहीं। एक कहावत है कि जहां न पहुंचे बैलगाड़ी वहां पहुंचे मारवाड़ी। इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए मारवाडिय़ों ने अपनी काबिलियत का डंका बजाते हुए न केवल बुलंदियों को छुआ बल्कि देश-विदेश में राजस्थानियों का नाम ऊंचा किया। कहते हैं कि राजस्थान के लोग जहां भी जाते हैं अपनी मेहनत व लगन से अपना मुकाम हासिल कर लेते हैं। अपनी संस्कृति व सभ्यता को सर्वोपरि मानने की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए राजस्थानी काम कर रहे हैं। पर्व-त्योहार हमें एकता के सूत्र में बांधने के साथ ही हमारे सामाजिक सौहार्द को मजबूती प्रदान करते हैं। पर्वों व त्योहारों के माध्यम से हमारी संस्कृति की वास्तविक पहचान होती है। भारतीय संस्कृति में त्योहार केवल उत्सव मनाने के अवसर से कहीं अधिक हैं। राजस्थान मूल के लोग कर्नाटक में रहते हुए दीपावली का पर्व किस तरह से मनाते हैं। प्रस्तुत हैं राजस्थान मूल के लोगों से हुई बातचीत के प्रमुख अंश:
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एक-दूसरे के प्रतिष्ठानों पर जाकर देते हैं शुभकामनाएं बालोतरा जिले के मोकलसर निवासी रमेश बाफना कहते हैं, दीपावली के अवसर पर प्रवासी समाज के लोग अपने प्रतिष्ठानों में पूजा करते हैं। प्रवासी समाज के लोग एक-दूसरे के प्रतिष्ठान पर जाकर उन्हें दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं। जैन समाज में भी लक्ष्मी पूजन की परम्परा रही है। वहीं भगवान महावीर स्वामी की पूजा भी की जाती है। हम पिछले पांच दशक से दीपावली पर पूजन करते आ रहे हैं। एक दशक पहले तक पूजन के बाद दीपावली के अवसर पर व्यापारी वर्ग दीपावली की शुभकामनाएं देने के साथ ही आपस में एक-दूसरे को बिजनेस के ऑर्डर भी साथ में देते थे। इससे एक-दूसरे के व्यापार में भी बढ़ोतरी होती थी। अब इस दिन ऑर्डर देने की परम्परा लगभग खत्म हो गई है। इसका एक कारण भावों में तेजी-मंदी अधिक होना भी है।
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उत्साह से मना रहे पर्व-त्योहार सिरोही जिले के आमलारी निवासी चौपाराम पटेल कहते हैं, राजस्थान के लोग कर्नाटक में भी दीपावली समेत अन्य पर्व-त्योहार उत्साह के साथ मना रहे हैं। दीपावली पर पूजा एवं दूसरे दिन एक-दूसरे के घर-प्रतिष्ठान पर जाकर दीपावली की शुभकामनाएं देने का रिवाज यहां भी हैं। राजेश्वर भवन में इस दिन विशेष सजावट व रोशनी की जाती है। हम हर साल मंदिर में जन्माष्टमी का कार्यक्रम धूमधाम से आयोजित कर रहे हैं। होली के पर्व पर स्नेह मिलन भी रखा जाता है। इस दौरान राजस्थान की परम्परागत गेर-नृत्य खास आकर्षण का केन्द्र रहती है। इसे देखने समूचे कर्नाटक से प्रवासी समाज के लोग आते हैं।
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परिचय सम्मेलन से सामाजिक रिश्तों में मजबूती जालोर जिले के धानसा निवासी वेलाराम घांची कहते हैं, घांची समाज पिछले कुछ वर्षों से हुब्बल्ली में दीपावली स्नेह मिलन का आयोजन कर रहा है। हुब्बल्ली में घांची समाज के करीब 65 परिवार निवास कर रहे हैं। स्नेह मिलन के माध्यम से आपसी परिचय के साथ ही सामाजिक रिश्तों में मजबूती आती है। ऐसे में दीपावली का पर्व हम एक साथ मिलकर मना रहे हैं। हालांकि समय के अनुसार थोड़ा बदलाव जरूर आया है बावजूद हम अपनी परम्पराएं एवं रीति-रिवाज को बनाए रखे हुए हैं।
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चौघडिय़ा देखकर पूजन बालोतरा जिले के बिठूजा निवासी मालाराम देवासी कहते हैं, प्रवासी दीपावली का त्योहार उत्साह के साथ मनाते हैं। घनतेरस के दिन घर व प्रतिष्ठानों पर पूजा की जाती है। दीपावली के दिन भी प्रतिष्ठानों में पूजा होती है। व्यापारी अच्छा चौघडिय़ा देखकर पूजन करते हैं। दीपावली पर एक-दूसरे के प्रतिष्ठानों पर जाकर दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं। विभिन्न समाज के स्नेह मिलन कार्यक्रम भी दीपावली के अवसर पर आयोजित किए जाते हैं। ऐसे स्नेह मिलन अधिकांश रविवार के दिन होते हैं। देवासी समाज होली के अवसर पर पिछले पांच साल से स्नेह मिलन का आयोजन कर रहा है। वहीं वर्ष 2001 से शिवरात्रि पर देवासी समाज की ओर से विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
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राजस्थान की तरह ही यहां मनाते हैं दीपावली जालोर जिले के थलवाड़ निवासी उदाराम प्रजापत कहते हैं, जिस तरह से राजस्थान में दीपावली का पर्व उल्लास व उमंग के साथ मनाते हैं। उसी तरह यहां भी दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है। दीपावली के मौके पर पूजा-पाठ किया जाता है। पटाखे छोड़कर खुशी का इजहार किया जाता है। एक-दूसरे के घर-दुकान पर जाकर दीपावली पर्व की शुभकामनाएं दी जाती हैं। दशहरे के बाद से ही घरों की साफ-सफाई व रंग-रोगन आदि का काम शुरू कर दिया जाता है। दीपावली के दूसरे दिन एक-दूसरे के घर व प्रतिष्ठानों पर जाकर दीपावली की शुभकामनाएं देने का रिवाज अब भी बना हुआ है।