मोकलसर निवासी ममता लूंकड़ कहती हैं, चातुर्मास में संतों के आने से संस्कृति निखरती है। चातुर्मास में चा यानी चंचलता को रोकना। आ यानी आत्म रंजन करना। त यानी तप करना। उ यानी उपासना करना। र यानी रमण करना। म यानी ममत्व का त्याग। आ यानी आग्रह वृत्ति का त्याग। स यानी सहनशीलता।
कुचेरा निवासी इन्द्रा बागमार कहती हैं, चातुर्मास के समय धर्म-ध्यान अधिक होने लगता है। लक्ष्य यही रहता है कि स्थानक जाएं और साधु-संतों के दर्शन करें। सामायिक, तपस्या करें। ऐसा लगता है कि साधु-संतों की प्रेरणा से कुछ न कुछ सीखें। रूचि के अनुसार सीखने की कोशिश करें।
कुचेरा निवासी सपना बागमार कहती हैं, चातुर्मास के दौरान हमें धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने का अवसर मिलता है। चातुर्मास के दौरान बच्चे भी प्रेरित होते हैं। वे धार्मिक कक्षाओं में भाग लेते हैं। चातुर्मास के दौरान मांगलिक लेकर जाते हैं। पच्चखाण करने को प्रेरित होते हैं।
कनाना निवासी संगीता तातेड़ कहती हैं, चातुर्मास के दौरान हमें गुरु का सान्निध्य मिलता है। चातुर्मास हमें समझ, समाधि, सद्गति देता है। चिंतामणि रत्न की प्राप्ति करा देता है। सदाचार की प्रेरणा
समदड़ी निवासी डिम्पल पालरेचा कहती हैं, चातुर्मास में पूजा-पाठ एवं ध्यान-साधना अधिक होती है। संयम व सदाचार की प्रेरणा मिलती है। चातुर्मास में जीवों की विराधना कम से कम करें। रात्रि भोजन त्याग करते हैं।
समदड़ी निवासी प्रीति पालरेचा कहती हैं, चातुर्मास संस्कृत भाषा का शब्द है। चार महीने आराधना-साधना करते हैं। गुरु भगवंतों की वाणी श्रवण करते हैं। चातुर्मास काय के रूप में पैदा होता हैं जिसे अनंत काय करते हैं।
समदड़ी निवासी बंटी पालरेचा कहती हैं, चातुर्मास में धर्म की आराधना होती है। पुण्य एवं पुरुषार्थ मिलता है। गुरु का सान्निध्य मिलता है। चातुर्मास के दौरान धर्म-ध्यान करने का लाभ मिलता है।