वर्धमान तप की 39 ओली
हुब्बल्ली प्रवासी राजस्थान के बालोतरा जिले के सिवाना मूल के भंवरलाल सी. जैन ने चातुर्मास की शुरुआत के बाद तेला किया और उसके बाद से लगातार आयंबिल चल रहा है। तेला के बाद सीधे आयंबिल करना और कठिन हो जाता है। 38 दिन का आयंबिल पूरा होने के बाद एक उपवास किया। फिर वर्धमान तप की 39 ओली चल रही है। आयंबिल एवं उपवास का गुरुवार को उनका 64 वां दिन था।
हुब्बल्ली प्रवासी राजस्थान के बालोतरा जिले के सिवाना मूल के भंवरलाल सी. जैन ने चातुर्मास की शुरुआत के बाद तेला किया और उसके बाद से लगातार आयंबिल चल रहा है। तेला के बाद सीधे आयंबिल करना और कठिन हो जाता है। 38 दिन का आयंबिल पूरा होने के बाद एक उपवास किया। फिर वर्धमान तप की 39 ओली चल रही है। आयंबिल एवं उपवास का गुरुवार को उनका 64 वां दिन था।
निरोग रहता है शरीर
जैन ने कहा, जीवन में हमें इस तप-तपस्या का महत्व समझना चाहिए और वर्षावास में अधिक से अधिक आयंबिल तप की आराधना से जुडऩा चाहिए। आयंबिल केवल तप ही नहीं बल्कि सुरक्षा चक्र है, जो भी मनुष्य आयंबिल करता है उसका शरीर निरोगी रहता है तथा बीमारियों से भी बचा रहता है। इसलिए जीवन में आयंबिल करे। आयंबिल तप में शारीरिक दुर्बलता आ सकती है लेकिन इससे आत्मीय बल बढ़ता है। अच्छी सोच आती है। गुस्सा कम आता है। गृह प्रवेश एवं अन्य शुभ अवसरों पर भी आयंबिल मांगलिक माना जाता है।
जैन ने कहा, जीवन में हमें इस तप-तपस्या का महत्व समझना चाहिए और वर्षावास में अधिक से अधिक आयंबिल तप की आराधना से जुडऩा चाहिए। आयंबिल केवल तप ही नहीं बल्कि सुरक्षा चक्र है, जो भी मनुष्य आयंबिल करता है उसका शरीर निरोगी रहता है तथा बीमारियों से भी बचा रहता है। इसलिए जीवन में आयंबिल करे। आयंबिल तप में शारीरिक दुर्बलता आ सकती है लेकिन इससे आत्मीय बल बढ़ता है। अच्छी सोच आती है। गुस्सा कम आता है। गृह प्रवेश एवं अन्य शुभ अवसरों पर भी आयंबिल मांगलिक माना जाता है।
कैंसर से खात्मे में मदद
जैन कहते हैं, यदि 150 दिनों तक आयंबिल लगातार किए जाएं तो कैंसर के खात्मे में मदद मिल सकती है। इसी तरह 81 दिन आयंबिल से कुष्ठ रोग ठीक करने में मदद मिल सकती है। ऐसा बताते हैं कि पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने आयंबिल शुरू किया था। भंवरलाल सी. जैन हर चतुर्दशी के मौके पर तेला रखने एवं हर अष्ठमी को उपवास के साथ ही हर साल 180 दिन आयंबिल एवं उपवास रख रहे हैं। परिवार के अन्य सदस्य भी तपस्या में सदैव अग्रणी रहते हैं।
जैन कहते हैं, यदि 150 दिनों तक आयंबिल लगातार किए जाएं तो कैंसर के खात्मे में मदद मिल सकती है। इसी तरह 81 दिन आयंबिल से कुष्ठ रोग ठीक करने में मदद मिल सकती है। ऐसा बताते हैं कि पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने आयंबिल शुरू किया था। भंवरलाल सी. जैन हर चतुर्दशी के मौके पर तेला रखने एवं हर अष्ठमी को उपवास के साथ ही हर साल 180 दिन आयंबिल एवं उपवास रख रहे हैं। परिवार के अन्य सदस्य भी तपस्या में सदैव अग्रणी रहते हैं।
कई तपस्वी महीनों तक करते हैं आयंबिल
जैन ने बताया कि आयंबिल एक तप है। इसमें दिन में एक बार भोजन किया जाता है लेकिन भोजन बहुत ही मर्यादित होता है जिसमे दूध, दही, घी, तेल, किसी भी प्रकार की मिठाई, गुड, शक्कर, मिर्ची, हल्दी, धनिया, कोई भी हरी सब्जी और फल, सूखे मेवे आदि वस्तुओ का संपूर्ण त्याग होता है। आयंबिल में सिर्फ अनाज और दालों को पकाकर केवल नमक, काली मिर्च और हिंग डालकर सिर्फ उबले पानी के साथ यह लूखा-सूखा भोजन दिन मे केवल एक बार दोपहर में किया जाता है। यह भोजन मनुष्य की जीभ की लालसा, जीभ की स्वादिष्ट भोजन करने की आदत को तोडऩे के लिए किया जाता है। कई तपस्वी कई दिनों और महीनों तक आयंबिल करते है।
जैन ने बताया कि आयंबिल एक तप है। इसमें दिन में एक बार भोजन किया जाता है लेकिन भोजन बहुत ही मर्यादित होता है जिसमे दूध, दही, घी, तेल, किसी भी प्रकार की मिठाई, गुड, शक्कर, मिर्ची, हल्दी, धनिया, कोई भी हरी सब्जी और फल, सूखे मेवे आदि वस्तुओ का संपूर्ण त्याग होता है। आयंबिल में सिर्फ अनाज और दालों को पकाकर केवल नमक, काली मिर्च और हिंग डालकर सिर्फ उबले पानी के साथ यह लूखा-सूखा भोजन दिन मे केवल एक बार दोपहर में किया जाता है। यह भोजन मनुष्य की जीभ की लालसा, जीभ की स्वादिष्ट भोजन करने की आदत को तोडऩे के लिए किया जाता है। कई तपस्वी कई दिनों और महीनों तक आयंबिल करते है।
द्वारिका आयंबिल के कारण रही सुरक्षित
जैन आगमों में बताया गया है कि कृष्ण की नगरी द्वारिका 12 वर्षों तक आयंबिल के तप के कारण सुरक्षित रही। बाद में आयंबिल तप में हुई लापरवाही के कारण द्वारिका नष्ट हो गई। श्री कृष्ण भी आयंबिल व्रत की महिमा जानते थे ,उन्हें प्रतिदिन एक आयंबिल हो ऐसी आज्ञा जारी की थी लेकिन नगरवासियों को जब श्री देवपायन ऋषि के श्राप का भय नहीं रहा तो उन्होंने आयंबिल करना बंद कर दिए और परिणाम सबके सामने है।
जैन आगमों में बताया गया है कि कृष्ण की नगरी द्वारिका 12 वर्षों तक आयंबिल के तप के कारण सुरक्षित रही। बाद में आयंबिल तप में हुई लापरवाही के कारण द्वारिका नष्ट हो गई। श्री कृष्ण भी आयंबिल व्रत की महिमा जानते थे ,उन्हें प्रतिदिन एक आयंबिल हो ऐसी आज्ञा जारी की थी लेकिन नगरवासियों को जब श्री देवपायन ऋषि के श्राप का भय नहीं रहा तो उन्होंने आयंबिल करना बंद कर दिए और परिणाम सबके सामने है।