हुबली

कम्प्यूटर, स्मार्ट क्लास समेत तमाम संसाधन, लेकिन छात्र केवल एक ही, अब छात्र संख्या नहीं बढ़ी तो 58 साल पुराना सरकारी स्कूल हो जाएगा बन्द

– नामांकन अभियान भी चलाया, लेकिन अभिभावक बच्चों को दाखिला दिलाने के लिए उत्सुक नहीं
– चिकमगलूरु जिले के बेलहोन्नूर के पास सीगोडू गांव का सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय
– 1966 में हुई थी स्कूल की स्थापना

हुबलीJul 05, 2024 / 01:04 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

education

चिकमगलूरु जिले के बेलहोन्नूर के पास सीगोडू का सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय। केंद्रीय कॉफी अनुसंधान संस्थान के कॉफी अनुसंधान स्टेशन के परिसर में स्थित इस विद्यालय की स्थापना साल 1966 में हुई। करीब 58 साल पहले स्थापित यह सरकारी विद्यालय अब बन्द होने के कगार पर है। स्कूल में केवल एक विद्यार्थी ही है। इस शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत में एक छात्रा में छठी कक्षा में प्रवेश लिया है। अब छात्रा के माता-पिता ने भी विद्यालय से स्थानांतरण प्रमाण-पत्र(टीसी) मांग लिया है ताकि वे भी अपनी बेटी को किसी दूसरी स्कूल में दाखिला दिला सकें।
स्कूल में बेहतर संसाधन लेकिन छात्र नहीं
गौर करने वाली बात यह भी है कि अमूमन देखा जाता है कि सरकारी स्कूलों में संसाधनों का टोटा रहता है लेकिन उस लिहाज से देखा जाएं तो इस स्कूल में स्मार्ट क्लास, कम्प्यूटर समेत तमाम संसाधन है। स्कूल में सात कक्षा-कक्ष एवं एक सभागार है। स्कूल में एक प्रधानाध्यापक और एक मिड-डे-मील वर्कर समेत दो शिक्षक हैं। पिछले एक महीने से वे एक ही विद्यार्थी को पढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। अब इस विद्यार्थी के भी अन्य स्कूल में प्रवेश लेने पर स्टाफ स्कूल के भविष्य को लेकर चिंतित है। इसी स्कूल से पढ़कर निकले कई छात्र देश में प्रतिष्ठित पदों पर आसीन है लेकिन अब हालात यह है कि आसपास के अभिभावक अपने बच्चों को इस स्कूल में प्रवेश दिलाने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
आसपास की सरकारी स्कूलों पर भी लग चुके हैं ताले
स्कूल के शिक्षकों ने स्कूल को बचाने के लिए नामांकन अभियान भी चलाया लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। आसपास के अन्य गांव हिरेगडे गांव के तलावने एवं अरालीकोप्पा में सरकारी स्कूल पहले ही छात्रों की कमी के चलते बन्द हो चुके हैं। ऐसे में अब सीगोडू का यह सरकारी स्कूल भी छात्रों की कमी के चलते जल्द बन्द हो सकता है। स्कूल के प्रधानाध्यापक ने कहा, माता-पिता अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेज रहे हैं। ऐसे में सरकारी स्कूल में पढऩे के लिए छात्र ही नहीं है।

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