फ़ूड बैंक का सहारा लेना पड़ रहा
उन्होंने बताया कि नीदरलैंड में ग़रीबी बढ़ने के कारण लोगों को फ़ूड बैंक का सहारा लेना पड़ रहा है। क्रिसमस के समय सारे सुपर बाज़ार में लोग अपने सामान के साथ कुछ सामान फ़ूड बैंक ( Food Banks)में दान के लिए भी ख़रीदते हैं। क्रिसमस पर सभी काम करने वालों को क्रिसमस पैकेट्स मिलते हैं । जैसे भारत में दिवाली पर बांटे जाते हैं।
परिवार के सभी लोग इकट्ठे होकर क्रिसमस मनाते हैं
डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने बताया कि पूरे यूरोप और ख़ास तौर पर नीदरलैंड की यह परंपरा है कि क्रिसमस के दिन परिवार के सभी लोग एक जगह इकट्ठे होकर पहले दिन साथ में क्रिसमस मनाते हैं । क्रिसमस के दूसरे दिन वे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के यहां जा कर त्यौहार मनाते हैं। जो लोग अकेले रहते हैं या जिनका कोई नहीं होता, वे लोग चर्च में जा कर साथ में खाना खाते है।
दो सप्ताह का अवकाश भी होता है
उन्होंने बताया कि इस दिन नीदरलैंड के राजा का बधाई संदेश (royal message) सबके लिए विशेष होता है । राजा अपने बधाई संदेश में अपनी जनता को बधाई तो देता ही है। साथ ही साथ आने वाले वर्षों की योजनाओं के बारे में भी जानकारी देता है । यहां लगभग सभी स्कूलों में क्रिसमस डिनर होता है। वहीं दो सप्ताह का अवकाश भी होता है।
नीदरलैंड में भारतीय समुदाय
गौरतलब है कि नीदरलैंड में भारतीय समुदाय की अच्छी खासी तादाद है। नीदरलैंड यूरोप में दूसरा सबसे बड़ा भारतीय प्रवासी (यू. के. के बाद) और मुख्य भूमि यूरोप में सबसे बड़ा प्रवासी है, जिसकी कुल संख्या लगभग 2,60,000 है, जिसमें 60,000 भारतीय और 2,00,000 भारतीय मूल के सूरीनामी-हिंदुस्तानी समुदाय के लोग शामिल हैं।
डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे : एक नज़र
डॉ.ऋतु शर्मा नंनन पांडे का जन्म 9 फ़रवरी को नई दिल्ली में हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. हिन्दी करने के बाद राजस्थान के कोटा विश्वविद्यालय से एम.ए व “जनसंचार एवं पत्रकारिता” में पी.एच.डी की शिक्षा के साथ ही “भारतीय अनुवाद परिषद्” बंगाली मार्केट से अनुवाद का स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया। सन 1997 से लेकर 2004 तक दिल्ली दूरदर्शन के साहित्यिक कार्यक्रम “पत्रिका” की संचालिका के रूप में कार्य करते हुए 2000-2003 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कालेज में “ जनसंचार एवं पत्रकारिता “विषय की प्राध्यापिका पद पर कार्यरत रहीं। उनकी कई अनूदित पुस्तकें व काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें फ़्रांस के नोबेल पुरस्कार विजेता जॉन पॉल सात्र का नाटक नो एक्ज़िट का “ बंद रास्तों के बीच “ एनएसडी दिल्ली के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। उनके लेख ,संस्मरण व कहानी और कविताएं कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। वे कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित हैं।