बॉलीवुड में जद्दनबाई के योगदान की बात करें तो वर्ष 1935 में पहली बार उन्होंने सी.एम. लुहार निर्देशित फिल्म ‘तलाश-ए-हक’ में संगीत दिया था। जद्दनबाई का गया हुआ गाना “लागत करेजवा में चोट” आज भी लोग दिल थाम के सुनते हैं। नरगिस की हसरत थी वे डॉक्टर बनें लेकिन उनकी मां के आगे वो मजबूर हो गईं और हिंदी सिनेमा में अपना करियर बनाया। आज भी नरगिस को बॉलीवुड की प्रतिभाशाली कलाकारों में से एक माना जाता है।
बनारस की रहने वाली जद्दनबाई की मातृभाषा भोजपुरी है। उन्हें ठुमरी गायन और नृत्य में पारंगत हासिल थी लेकिन भोजपुरी भाषा के प्रति प्रेम ने ही मशहूर फिल्मकार महबूब खान को आखिरकार मजबूर कर ही दिया वर्ष 1943 में बनी फिल्म ‘तकदीर’ में जद्दनबाई की पसंद का एक गाना रखा गया। फिल्म ‘तकदीर’ में जद्दनबाई की पसंद और इच्छा से मजबूर होकर भोजपुरी भाषा की एक ठुमरी रखी गई थी। वह गाना इतना प्रसिद्ध हुआ कि खुद जद्दनबाई और निर्माता महबूब खान को भी हैरानी हुई गाने के पॉपुलर होने के बाद ही जद्दनबाई को भोजपुरी फिल्में बनाने की सूझी लेकिन वो कभी इसमें कामियाब नहीं हो पाईं।