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अजीब प्रथा: यहाँ एक साल के लिए 500 रुपए में किराये पर मिलती है दूसरों की बीवी

Dhadicha: गुजरात और मध्य प्रदेश के एक गाँव में एक ऐसी कुप्रथा आज भी चलन में हैं जहां महिलाओं की बोली लगाई जाती है। आधुनिक समाज में भी ये एक महिला के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है।

Jul 21, 2022 / 05:16 pm

Mahima Pandey

Practice Of ‘Buying And Selling Wives On Rent’ In Madhya Pradesh Shivpuri, Gujarat

आज देश और दुनिया में महिलायें न केवल आगे बढ़ रही हैं, बल्कि परूषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, लेकिन देश में कुछ ऐसी जगहें भी हैं जहां महिलाओं का जीवन कुप्रथा के जाल में बर्बाद हो रहा है। इसके खिलाफ न महिलायें आवाज उठा रहीं और न ही कोई और उनके हक की लड़ाई के लिए आगे आ रहा। एक ऐसी ही कुप्रथा के बारे में आज आपको बताएंगे जो आज भी देश के कुछ गावों में चलन में हैं जहां पर पुरुषों द्वारा दूसरों की बीवी खरीदने या किराये पर लेने का रिवाज है।

ये कुप्रथा मध्य प्रदेश और गुजरात दोनों ही जगह आज भी चलन में हैं। दरअसल, मध्य प्रदेश के शिवपुरी गाँव में ‘धड़ीचा प्रथा’ काफी प्रचलित है। यहाँ हर साल बकायदे एक मंडी लगाई जाती है जहां लड़कियों की बोली लगाई जाती है। यहाँ पुरुष किसी भी महिला को चाहे वो किसी की बीवी या बेटी ही क्यों न हो उसे अपनी बीवी के तौर पर किराये पर ले सकते हैं।


जब मध्य प्रदेश के इस इलाके में मंडी लगती है तो खरीदार पुरुष दूर-दूर से यहाँ पत्नी खरीदने या किराये पर लेने के लिए आते हैं। इसके लिए 10 रुपये से 100 रुपये के एक स्टाम्प पेपर पर एग्रीमेंट भी होता है। इसके तहत एक साल या उससे अधिक समय के लिए महिला को अपने पास रखने के लिए पुरुष को तय रकम देनी पड़ती है और उतने समय के लिए लड़की उसके पास रहती है। इसके बाद वो उसे वापस छोड़ देता है।
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जिस महिला को पुरुष खरीदता या बोली लगाता है तो वो लड़की के घरवालों को पहले एक तय रकम देता है जो 500 से 50 हजार रुपये तक के बीच हो सकती है। डील हो जाने के बाद ये आवश्यक है कि वो पुरुष उस महिला से शादी करे और तय वक्त तक वो महिला बीवियों वाली सभी जिम्मेदारियाँ निभाती है। जब ये एग्रीमेंट खत्म होता है तब वो पुरुष पैसे देकर उसे आगे बढ़ा सकता है और उसी महिला के साथ रह सकता है। हालांकि, महिला चाहे तो वो ये एग्रीमेंट तोड़ सकती है, लेकिन इसके लिए उसे तय रकम अपने पति को लौटानी होगी।


ये ‘धड़ीचा प्रथा’ गुजरात के भी कुछ गांवों में है। यहाँ भी दूसरों की बीवी की बोलियाँ लगाई जाती हैं। ये कुप्रथा किसी अभिशाप से कम नहीं है। इसे रोकने के लिए प्रशासन ने कई सख्त कदम उठा चुका है, लेकिन आज भी चोरी छिपे ये जारी है। इसके खिलाफ किसी ने भी आवाज उठाने की कोशिश नहीं की। यहाँ तक खुद महिलायें भी खुलकर इसपर नहीं बोलती हैं।

इस कुप्रथा के पीछे का कारण इन इलाकों में महिलाओं की कम होती जनसंख्या है। इस गाँव में लड़कियों की काफी कमी है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ के लोग लड़की पैदा होते ही उसे मार देते हैं तो कुछ अपना घर चलाने के लिए उसे किराये पर दे देते हैं। ऐसे में अपनी जरूरत के हिसाब से यहाँ महिलाओं की बोली हर साल लगाई जाती है। फिर भी सवाल तो उठते हैं कि न जाने कब ये कुप्रथा समाप्त होगी और इन महिलाओं को इससे मुक्ति मिलेगी।

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