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पानी की अहमियत जानता है राजस्थान, सूखा ग्रस्त इलाके 400 साल पुरानी इस तकनीक से लें सीख

राजस्थान में 400 साल पुरानी है वर्षा-जल संग्रहण तकनीक
पूरे वर्ष पेयजल की समस्या हो जाती है दूर
टांका की इस तकनीक से सूखा ग्रस्त इलाके ले सकते हैं सीख

Jun 10, 2019 / 12:08 pm

Priya Singh

पानी की एहमियत जनता है राजस्थान, करीब 400 साल पुरानी तकनीक से सीख लें सूखा ग्रस्त इलाके

नई दिल्ली। भारत के कई ऐसे इलाके जहां के लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। हमारे देश के ऐसे कई इलाके हैं जिसकी धरा पर कहीं नमी नहीं, पानी नहीं, ज़मीन की कोख सूख चुकी है, तालाबों का सीना फट चुका है। लेकिन पानी की इस किल्लत में एक खबर है जो उन लोगों के लिए सीख बन सकती है जो बारिश न होने पर भगवान को कोसते हैं और बारिश के बाद फिर पानी के लिए तरसते हैं। वर्षा-जल संग्रहण यानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग ( Rainwater Harvesting ) के बारे में आप तो जानते ही होंगे। पानी को बचाने का यह सबसे अच्छा तरीका है। यहां सवाल यह उठता है कि लोग वर्षा-जल संग्रहण ( rainwater harvesting systems ) के बारे में जानते हुए भी समय रहते उपाय नहीं कर पाते।

टांका की तकनीक वर्त्तमान के साथ संवार रही है भविष्य

वहीं एक तरफ राजस्थान के लोग हैं जो रेगिस्तान ( Rajasthan ) के इलाके में रहते हए भी करीब 400 वर्षों से वर्षा-जल संग्रहण कर रहे हैं। उनका पानी संग्रहण करने का यह तरीका जितना परंपरागत है उतना ही कारगर है। साल में एक अच्छी बारिश राजस्थान के लगभग हर घर को करीब पूरे वर्ष पेयजल की समस्या से निजात दिला जाती है। जहां भारत के कई इलाके के लोग नलकूप जैसी तकनीकों पर निर्भर होने लगे हैं वहीं राजस्थान में ‘टांका’ की परंपरागत तकनीक लोगों का वर्त्तमान के साथ भविष्य भी संवार रही है।

technique of rainwater harvesting

सन 1607 में पहली बार बनाया गया

ऐसा कहा जाता है वर्ष 1607 में ‘टांका’ को राजा सूर सिंह के बनवाया था। कहते हैं एक समय था जब गांव में किसान अपनी ज़मीन के बीच में एक तालाब के भर की जगह बचाकर रखते थे। इस जगह पर गहरा गड्ढा खोदकर किसान हर बरसात में उसमें पानी का संग्रहण कर खेती के लिए इस्तेमाल किया करते थे। जो उस तालाब की तरफ से गुज़रता था वह अगर एक मुट्ठी मिट्टी भी तालाब से निकालकर तालाब को गहरा कर रहा है तो वह पुण्य का काम कर रहा है।

यहां पीने के पानी का मुख्य स्रोत टांका है। सार्वजनिक टांके पंचायती भूमि पर बनाए जाते हैं। जो परिवार अपना टांका बनाने की सक्षम होते हैं वे व्यक्तिगत टांके बनाते हैं। व्यक्तिगत टांके घर के सामने आंगन या अहाते में बनाए जाते हैं। टांका एक भूमिगत पक्का कुण्ड है जो सामान्यतया गोल होता है। छत से वर्षाजल का पानी सीधा टांके में जाकर स्टोर हो जाता है। टांके को इस तरह तैयार किया जाता है कि वह पानी पीने लायक हो जाता है।

rainwater harvesting
विशेषता
1- टांके के पानी में बदबू नहीं आती है।
2- कम खर्च में टांका तैयार हो जाता है।
3- साथ ही वर्षा का पूरा जल टांके में पहुंचता है।
4- खारे पानी को पीने की मजबूरी से निजात।
5- दूर से पानी लाने की समस्या से छुटकारा।

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