लोग जिसे समझ रहे थे बारात उसकी हकीकत कुछ और ही निकली और फिर…
यही दोनों कंपनियां हैं जो पूरे देश को वोटिंग के लिए इंक सप्लाइ करती हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह इंक विदेशों में भी सप्लाई की जाती है। इस इंक को बनाते समय केवल कंपनी के स्टाफ और अधिकारी ही वहां मौजूद रहते हैं। इस इंक में सिल्वर नाइट्रेट मिलाया जाता है। सिल्वर नाइट्रेट को इंक में इसलिए मिलाया जाता है क्योंकि इसका रंग अल्ट्रावॉइलट लाइट के पड़ते ही पक्का हो जाता है।
भाजपा के संकल्प पत्र में हो गयी इतनी बड़ी गलती, सोशल मीडिया पर पड़ रही हैं गालियां
एक रिपोर्ट के अनुसार, इस स्याही को पहली बार 1962 में इस्तेमाल किया गया था। तब 3.74 लाख बोतलों की कीमत 3 लाख रुपए रही गई थी। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल 4.5 लाख ज्यादा बोतलें मंगाई गई हैं। 2009 में 12 करोड़ रुपए की स्याही खरीदी गई थी। इस तथ्य से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि एलेक्शंस में इस इंक की कीमत क्या होती होगी।