कहानी के मुताबिक, महाराणा प्रताप ने पहली बार में ही चेतक ( chetak k ) को पसंद कर लिया था। उन्हें पता था कि अगर उन्होंने यह बात बोल दी कि उन्हें चेतक ही चाहिए तो शक्ति सिंह भी उसे लेने की ज़िद करते। चेतक को शक्ति सिंह की नज़र से बचाने के लिए महाराणा प्रताप के एक चाल चली। महाराणा प्रताप न चाहते हुए भी सफेद रंग के घोड़े की तरफ बढ़े और उसकी तारीफों के पुल बांधने लगे। उन्हें ऐसा करते देख शक्ति तेज़ी से गया और सफेद घोड़े की पीठ पर बैठ गया। उसके ऐसा करने पर महाराणा प्रताप ने उसे सफेद घोड़ा दे दिया और चेतक को ले लिया।
इसके बाद महाराणा प्रताप की जो भी वीर गाथाएं प्रचलित हुईं उनमें चेतक का अपना ही स्थान है। चेतक की फुर्ती के कारण ही चेतक ने कई युद्धों को बड़ी सहजता के साथ जीता था। महाराणा प्रताप चेतक को अपने बेटे की तरह प्यार करते थे। चेतक को महाराणा प्रताप ने युद्ध के लिए अच्छे से प्रशिक्षण दिया था। कहते हैं युद्ध के दौरान चेतक को हाथी की नकली सूंढ़ लगाई जाती थी जिससे दुश्मन भ्रम में रहें। हल्दीघाटी ( Haldighati ) के युद्ध की बात करें तो चेतक ने उसमें अनोखे कौशल का प्रदर्शन किया। हल्दीघाटी का वह चित्र आप सबने देखा होगा जिसमें चेतक ने राजा मान सिंह के हाथी के मस्तक पर अपनी टाप रख दी थी। इसी दौरान मान सिंह के हाथी से चेतक ज़ख़्मी हो गया था।
महाराणा प्रताप बिना किसी सहायता के ज़ख़्मी चेतक को लेकर हल्दीघाटी से निकल गए। उनके पीछे मुग़ल सैनिक लगे हुए थे। घायल चेतक उस समय भी महाराणा को बचाने की सोच रहा था। चेतक 26 फुट के नाले को फुर्ती के साथ लांघ गया। लेकिन चेतक घायल था उसकी गति धीरे-धीरे कम होने लगी पीछे से मुग़लों के घोड़ों की ताप भी सुनाई दे रही थी। इतने में उसी समय पीछे से किसी ने आवाज़ दी। प्रताप ने पीछे देखा तो वह उनका भाई शक्ति सिंह था। महाराणा प्रताप से व्यक्तिगत विरोधों की वजह से शक्ति सिंह युद्ध में मुग़लों की तरफ से लड़ रहा था। लेकिन इस समय वह अपने भाई की रक्षा के लिए आया था। शक्ति सिंह ने उसके भाई को मारने आए दो मुग़लों को मौत भी के घाट उतार दिया। जीवन में पहली बार दोनों भाई प्यार से गले लगे। इस मिलन के दौरान चेतक ज़मीन पर गिर गया और उसने प्राण त्याग दिए। चेतक के मरने के बाद उसी जगह पर उसकी समाधी बनाई गई।
आपने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना है लेकिन उनका एक प्रिय हाथी भी था जिसका नाम था रामप्रसाद। यह हाथी भी अपनी स्वामी भक्ति और विलक्षण प्रतिभाओं के लिए प्रसिद्ध था। बता दें कि अल बदायुनी जो मुग़लों की ओर से हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ा था। उसने रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अपने लिखे एक ग्रंथ में किया है। बदायुनी ने लिखा है कि जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढ़ाई की तब अकबर ने दो ही चीजों को बंदी बनाने की मांग की थी। एक तो खुद महाराणा प्रताप और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद। रामप्रसाद हाथी इतना समझदार और ताकतवर था कि हल्दीघाटी के युद्ध में उसने अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था।
रामप्रसाद को पकड़ने के लिए सात बड़े हाथियों का चक्रव्यूह बनाया गया था और उनपर 14 हमवत को बैठाया गया तब जाकर उसे बंदी बनाया जा सका। रामप्रसाद को बंदी बनाकर अकबर के सामने प्रस्तुत किया गया। अकबर ने उसका नाम बदलकर वीरप्रसाद रख दिया। मुग़लों ने उसे गन्नों के साथ-साथ पानी पेश किया। लेकिन रामप्रसंद ने 18 दिनों तक मुग़लों के हाथ से न तो कुछ खाना ना ही पानी पीया। और इस तरह बिना खाए-पीए उसने अपने प्राण त्याग कर दिए। उसके मरने के बाद अकबर ने कहा था कि “जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया, उस महाराणा प्रताप को मैं क्या झुका पाऊंगा।” कहना गलत नहीं होगा जिस देश में चेतक और रामप्रसाद जैसे जानवर हैं उस देश का झुकना असंभव है। एक सच्चे राजपूत और सच्चे देशभक्त की वजह से हिंदुस्तान एक महान देश बनता है।