चूंकि ये कीड़ाजड़ी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है इसलिए विदेशों में इसकी जबरदस्त मांग रहती थी। हिमालयन वियाग्रा एक तरह का जंगली मशरूम है, जो एक खास कीड़े के कैटरपिलर्स को मारकर उसके ऊपर पनपता है। ये ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मिलती है। इस जड़ी को सबसे ज्यादा चीन खरीदता था। मगर भारत से उसके तल्ख हुए रिश्तों के चलते इसकी बिक्री पर असर पड़ा है। इसके अलावा सिंगापुर और हॉगकांग में भी इसकी खास डिमांड रहती थी। बिजनेसमैन इसे 20 लाख रुपए प्रति किलो तक खरीदते थे। इसी के चलते एशिया में हर साल इसका 150 करोड़ रुपए का व्यवसाय होता था। मगर लॉकडाउन के चलते खरीददार भारत नहीं आ पा रहे हैं।
बताया जाता है कि कीड़ाजड़ी को मई से जुलाई महीने के बीच पहाड़ों से निकाला जाता है। क्योंकि उस वक्त बर्फ पिघलती है। इसको निकालने के लिए सरकार की ओर से अधिकृत 10-12 हजार स्थानीय ग्रामीण वहां जाते हैं। दो महीने इसे जमा करने के बाद वे इसे अलग-अलग जगहों पर दवाओं के लिए बेचते हैं। ये शारीरिक दुर्बलता, यौन इच्छाशक्ति की कमी, कैंसर आदि बीमारियों को ठीक करने के लिए सबसे ज्यादा असरदार साबित होती है।
15 साल में 30 प्रतिशत घटी उपज
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के मुताबिक कीड़ाजड़ी एक विशेष प्रकार की जड़ी-बूटी है। मगर तेजी से घटती इसकी उपज के चलते इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। संघ की ओर से इसकेरेड लिस्ट में डाला है। उनके मुताबिक पिछले 15 सालों में हिमालयन वियाग्रा की उपलब्धता में 30 प्रतिशत की कमी आई है। इसका सबसे बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज और अत्यधिक मांग है। हालांकि कोरोना काल में लॉकडाउन के चलते इन्हें खरीददार नहीं मिल रहे हैं। इससे व्यवसाय प्रभावित हो रहा है।
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के मुताबिक कीड़ाजड़ी एक विशेष प्रकार की जड़ी-बूटी है। मगर तेजी से घटती इसकी उपज के चलते इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। संघ की ओर से इसकेरेड लिस्ट में डाला है। उनके मुताबिक पिछले 15 सालों में हिमालयन वियाग्रा की उपलब्धता में 30 प्रतिशत की कमी आई है। इसका सबसे बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज और अत्यधिक मांग है। हालांकि कोरोना काल में लॉकडाउन के चलते इन्हें खरीददार नहीं मिल रहे हैं। इससे व्यवसाय प्रभावित हो रहा है।