Kargil Vijay Diwas : -48 डिग्री के तापमान में दिखा था भारतीय जवानों का दम, इन 10 तरीकों से दी थी पाक को मात
गैंग ऑफ फोर या डर्टी फोर के नाम से कहे जाने वाले उन पाकिस्तानी काफिरों ने जो किया उसका अंजाम उन्हें भुगतना पड़ा। आइए पहले जानते हैं कि कारगिल कहां है और Kargil War के घुसपैठियों को सबसे पहले किसने देखा था। विजय गाथा की उस कहानी को समझने के लिए हमें थोड़ा फ्लैशबैक में चलने की ज़रुरत है। इस कहानी में बलिदान की गौरव गाथा है। इस कहानी में सेना के लड़कों की दहाड़ है। साथ ही इस कहानी में कुछ सवाल हैं जिनका जवाब आजतक नहीं मिला।
विजय दिवसः जानिए कारगिल युद्ध के बारे में सबकुछ, क्यों शुरू हुई यह लड़ाई
करगिल जम्मू-कश्मीर के सबसे शांत संभाग लद्दाख में बसा एक छोटा सा जिला है। ऊंचे पर्वतों में बसे इस कस्बे की शांति ही इसकी पहचान है। 1999 में मई के महीने में पाकिस्तान ने यहां की शांति को खंडित करने की साजिश रची। करगिल से लगभग 60 किलोमीटर दूर सिंधु नदी के तट पर बसा है गारकॉन गांव। इसी गांव के रहने वाले ताशी नामगया वही शख्स हैं जिन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों की सूचना भारतीय सेना को दे थी। चरवाहे ताशी का याक कहीं खो गया था तो वे उसे ढूंढ रहे थे। तभी उन्हें वहां एक ऊंची चोटी पर हलचल दिखी एक मीडिया चैनल को इंटरव्यू देते समय उन्होंने बताया कि वो करीब 6 लगो थे। इस सूचना के बाद उन्हें कई सर्टिफिकेट भी दिए गए हैं लेकिन ताशी का सरकार से सवाल है कि वे इन सब का क्या करेंगे। सिर्फ ताशी नहीं उनके गांवालों का भी कहना है कि उन्होंने युद्ध के समय सेना की मदद की थी लेकिन बदले में किसी ने उनकी सुध नहीं ली।
युद्ध के दौरान गारकॉन गांव के लोगों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। बच्चों के स्कूल छूटे लोग अपने घरों में बंद रहने को मजबूर थे। गांव के एक-एक घर से कम से कम दो बंदे सेना की मदद के लिए पहुंचे। लड़ाई में गांववालों की सारी ज़मीन भी खराब हो गई। गांववालों की मांग है कि उनके गांव में प्राथमिक सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। यूं तो गारकॉन के लोग फक्र महसूस करते हैं कि उन्होंने सेना के साथ मिलकर पाकिस्तानियों को खदेड़ दिया लेकिन उनकी शिकायत है कि सरकार ने इस काम के लिए उन्हें उचित ईनाम नहीं दिया।