हम यहां बात कर रहे हैं अरबों की कंपनी हरे कृष्णा डायमंड एक्सपोर्ट्स के मालिक घनश्याम ढोलकिया के बेटे हितार्थ ढोलकिया की। दरअसल हितार्थ के साथ कुछ ऐसा हुआ कि उसने एक महीने के लिए अपनी ऐशो-आराम की जिंदगी को त्यागकर एक आम व्यक्ति की तरह दिन गुजारे। एक सामान्य युवक अपनी जिंदगी में जिन कठिनाइयों का सामना करता है, हितार्थ ने वो सब किया।
घनश्याम ढोलकिया के सातवें बेटे हितार्थ का इस बारे में कहना था कि, ‘मैंने अमरीका में शिक्षा ग्रहण की है और मेरे पास डायमंड ग्रेडिंग में सर्टिफिकेट भी है, लेकिन हैदराबाद में मुझे इससे कोई खास मदद नहीं मिली। मैं जैसे ही हैदराबाद पहुंचा, नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी क्योंकि मेरे पास बिल्कुल पैसे नहीं बचे थे। खुशकिस्मती से सिकंदराबाद में मुझे 100 रुपए में एक कमरा मिल गया। मैं वहां 17 लोगों के साथ एक कमरा शेयर कर रहा था। मेरा अगला काम था अपने लिए एक नौकरी ढूंढना। करीब 3 दिनों तक भटकने के बाद मुझे एक मल्टीनेशनल फूड जॉइंट में नौकरी मिली। वहां मेरी तनख्वाह 4000 रुपये थी। मैं दिए गए चैलेंज के अनुसार वहां 5 दिन तक काम किया और इसके बाद मैनें वो नौकरी छोड़ दी।’
आपको बता दें कि हितार्थ न्यूयॉर्क से मैनेजमेंट की पढ़ाई की और अब वो अपनी छुट्टियां बिताने भारत अपने घर आया था। इस दौरान हितार्थ के पिता ने उससे इस बात की शर्त रखी कि फैमिली बिजनेस में आने से पहले वो अपने परिवार का नाम बिना इस्तेमाल किए और मोबाइल का यूज किए बिना कुछ ऐसा कर दिखाएं जिससे कि उसे जिंदगी के संघर्षों का अनुभव मिल सके।
हितार्थ के पिता घनश्याम ढोलकिया ने उसे 500 रूपए और एक फ्लाइट का टिकट दिया। टिकट देखकर हितार्थ को पता लगा कि उसे हैदराबाद जाकर अपनी पिता की ओर से दिए गए चैलेंज को पूरा करना है।
हैदराबाद में हितार्थ की सबसे पहली नौकरी मैकडॉनल्ड में थी। इसके बाद उसने एक मार्केटिंग कंपनी में बतौर डिलीवरी बॉय के रूप में काम किया। एक शू कंपनी में वो सेल्समैन भी बना। इस तरह उसने 4 सप्ताह में 4 नौकरियां कीं और महीने के अंत तक 5000 रुपये कमाए। इस दौरान उसने किसी से भी इस बात का जिक्र नहीं किया कि वो हरे कृष्णा डायमंड एक्सपोर्ट्स के मालिक घनश्याम ढोलकिया के बेटे हैं।
एक महीने की समयावधि पूरा हो जाने के बाद उसने फोन कर इस बात की सूचना अपने परिवार को दी। खबर मिलते ही हितार्थ के परिवार वाले उससे मिलने हैदराबाद आए और उस दुकान पर गए जहां उसने काम किया।
हितार्थ ने जिस बखूबी से अपने चैलेंज को पूरा किया वो वाकई में प्रशंसनीय है क्योंकि एकबार अमीरी की लत लग जाने पर उसे छोड़कर एक सामान्य जिंदगी गजारना वाकई में मुश्किल है।