जब शायर कैफ़ी आज़मी की ग़ज़ल सुन इस लड़की ने तोड़ दी थी अपनी मंगनी, आज ही के दिन दुनिया को कह गए थे अलविदा आपको बता दें कि इस क्रान्ति की शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ ( Meerut ) में हुई थी। इसीलिए आज ही के दिन यानि 10 मई को हर साल ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाया जाता हैं। इस क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने की हिम्मत दिखाई थी और उनकी पूरी हुकूमत को नाकों चने चबवा दिए थे।
10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। जैसे ही शहर में ये खबर फैली कि सैनिकों ने विद्रोह कर दिया है आस-पास के गांव के लोग हजारों की तादाद में मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे।
धन सिंह कोतवाल एक क्रान्तिकारी की तरह निकलकर सबके सामने आ गए थे। वो पुलिस में उच्च पद पर कार्यरत थे। धन सिंह ने इस भीड़ को एक नेता के तौर पर एक नई दिशा दी जो की अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ थी। धन सिंह के इस कदम की वजह से अंग्रेज उनसे डर गए थे। धन सिंह ने भीड़ के साथ रात 2 बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी।
जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। मंगल पाण्डे 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे।
जब घर के दरवाजे पर चढ़ने लगा मगरमच्छ, उड़ गए मालिक के होश क्रान्ति के दमन के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने 10 मई, 1857 को मेरठ मे हुई क्रान्तिकारी घटनाओं में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई। विलियम्स ने उस दिन की घटनाओं का भिन्न-भिन्न गवाहियों के आधार पर गहन विवेचन किया तथा इस सम्बन्ध में एक स्मरण-पत्र तैयार किया, जिसके अनुसार उन्होंने मेरठ में जनता की क्रान्तिकारी गतिविधियों के विस्फोट के लिए धन सिंह कोतवाल को मुख्य रूप से दोषी ठहराया और 4 जुलाई को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।