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वो राष्ट्रपति जिसकी जीत का ऐलान हुआ था जामा मस्जिद से, 8 साल की उम्र में छिन गया था पिता का साया

पढ़ाई छोड़ आज़ादी के आंदोलन में कूद पड़े
29 साल की उम्र में बने जामिया मिलिया इस्लामिया के वाईस चांसलर
विरोध के बाद भी जीते राष्ट्रपति का चुनाव

May 02, 2019 / 03:24 pm

Priya Singh

वो राष्ट्रपति जिसकी जीत का ऐलान हुआ था जामा मस्जिद से, 8 साल की उम्र में छिन गया था पिता का साया

नई दिल्ली। 3 मई सन 1969 को पूर्व राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन का निधन हुआ था। हैदराबाद में 18 फरवरी 1857 में जन्में ज़ाकिर हुसैन ( Zakir Hussain ) जब 8 साल के थे तभी उनके सिर से पिता का साया हमेशा के लिए उठा गया। जब ज़ाकिर अलीगढ़ में पढ़ रहे थे तब वे आज़ादी के आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और महात्मा गांधी की टोली में शामिल हो गए। महज 29 साल की उम्र में उन्हें जामिया मिलिया इस्लामिया का वाईस चांसलर बना दिया गया। गांधी जी ने उन्हें देश की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने का ज़िम्मा सौंपा। इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ( aligarh muslim university ) के कुलपति के तौर पर उन्होंने शानदार काम किया।

1992 से लेकर 1997 तक वो राजयसभा के सदस्य रहे। इसी दौरान डॉक्टर जाकिर हुसैन को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। राज्य सभा में कार्यकल खत्म होने के बाद वे 5 साल तक बिहार के राजयपाल रहे। इसके बाद 1962 में वे देख के दूसरे उप राष्ट्रपति चुने गए। अगले ही साल वे भारत रत्न का सम्मान पा चुके थे। 13 मई 1967 को वे देश के तीसरे राष्ट्रपति चुने गए।

जाकिर हुसैन के राष्ट्रपति बनने से पहले उस समय की विपक्षी पार्टी जन संग दल बार-बार कह रही थी कि जाकिर हुसैन एक मुस्लिम हैं और देश की जनता एक मुस्लिम को अपना राष्ट्रपति स्वीकार नहीं करेगी। इस बात पर गांधीवादी और समजवादी जयप्रकाश नारायण ( Jayaprakash Narayan ) सामने आए और उन्होंने कुछ ऐसा बोला जो अगले दिन अख़बारों की हेडलाइन बन गया। “विपक्षी दलों को संकीर्ण मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए। अगर जाकिर साहब राष्ट्रपति नहीं चुने गए तो यह देश की कौमी एकता के लिए ठीक नहीं होगा। देश टुकड़ों में बंट जाएगा।”

6 मई 1967 को एआईआर पर राष्ट्रपति के नतीजे आए और डॉक्टर जाकिर हुसैन जीत गए। जाकिर हुसैन को दिल्ली के लोग बेहद पसंद करते थे। उन्हें राष्ट्रपति के चुनाव के नतीजों का बेसब्री से इंतज़ार था। लोग राषपति भवन से सामने जमा थे। जब उन्हें नतीजा पता चला तो लुटियंस दिल्ली के आसमान में खुशियों का शोर सुनने को मिला। जमा मसजिद से भी डॉक्टर जाकिर हुसैन की जीत का ऐलान किया गया। मुस्लिम खुश थे कि उनके बीच का कोई देश के सबसे ऊंचे पद पर पहुंचा है।

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