हालांकि कहा जाता है कि बिना युद्ध लड़े ही अंग्रेजों की जीत तय मानी जा रही थी। इतिहास कारों का मानना था कि यह युद्ध मामूली सैन्य झड़प था लेकिन इसके परिणाम दूरगामी थे। क्योंकि इसी युद्ध ने अंग्रेजों के हौसलों को बुलंद किया और बंगाल में उनकी जड़ें मजबूत की। उस समय भारत के राजाओं के बीच बिगड़े रिश्तों की जानकारी भी अंग्रेजों को थी और उसी का फायदा उठाकर उन्होने यह युद्ध जीत लिया जिसका असर आज के भारत पर भी नज़र आता है। इस युद्ध को जीत जाने के बाद अंग्रेजों ने भारत पर 200 साल तक राज किया और भारत आज भी उस गुलामी के कारण होने वाले नुकसान से उभर नहीं पाया है।
मीरजाफर जिसने बंगाल के नवाब सिराजद्दौला को धोखा देकर अंग्रेजों को जिताने में अहम भूमिका निभाई थी उसे अंग्रेजों ने बंगाल का नवाब बना दिया और कठपुतली की तरह इशारों पर नचाया। अंग्रेजों और मीरजाफर के बीच हुई सन्धि के तहत मीरजाफर ने नवाब बनने के बाद अंग्रेजों को 24 परगनों की जमीदारी सौंपी, ढाका और कासिमबाजार में दुर्ग निर्माण करने का अधिकार दिया, कलकत्ता को पूरी तरह से अंग्रेजों के अधीन कर दिया और साथ ही बंगाल में सभी प्रकार की व्यापारिक सुविधाओं को भी अंग्रेजों को दे दिया। युद्ध में हार के बाद सिराजुद्दौला को अंग्रेजों ने बंदी बना लिया और उसकी हत्या कर दी।