इनका 30 यात्रियों का जत्था 16 जून को केदारनाथ में ही था जब वह पहाड़ पिघलकर ढह गया और अनगिनत लोगों की जान अपने साथ बहा ले गया। इस बाढ़ ने हाहाकार मचा रखा था कई लोग अपनों से बिछड़ गए। इसी स्थिति में विजेंद्र की पत्नी लीला भी उनसे बिछड़ गयी। इन दोनों के पास संपर्क करने का कोई जरिया नहीं था। उस विनाशकारी बाढ़ वाले इलाके में क्षतिग्रस्त सड़कों के कारण रास्ते बंद हो गए थे और वे खो गयी थीं। इतनी सारी बाधाओं के बावजूद विजेंद्र प्रकृति के खिलाफ लड़ाई लड़े बिना हार नहीं मानने वाले थे। पानी का स्तर बढ़ने और इमारतों के ढहने के साथ-साथ विजेंद्र ने लीला की खोज भी जारी रखी। उनके पास लीला को ढूंढने का एकमात्र साधन था वो थी लीला की एक तस्वीर। और वे उस इलाके में अपनी पत्नी की फोटो लेकर घूमने लगे। वह इस तस्वीर को लोगों को दिखाते जिनसे भी मुलाकात करते तो पूछते “क्या आपने मेरी पत्नी को कहीं देखा है?”
दिन हफ्ते में और हफ्ते महीने में बदल गए, लेकिन लीला का कुछ पता नहीं चल रहा था। उनके घर वाले उन्हें घर वापस आने के लिए मिन्नतें करते रहे थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानते हुए अपनी पत्नी की लगातार खोज की। उनके परिवार वालों को लग रहा था कि, विजेंद्र का दिमागी संतुलन बिगड़ चुका है। लेकिन विजेंद्र को पता था कि उनकी पत्नी को कुछ नहीं हुआ है और वो भी कहीं उनका इंतज़ार कर रही हैं। फिर उनकी ज़िंदगी में एक दिन बड़ा बदलाव आया जब राज्य सरकार ने लीला को मृत घोषित कर दिया क्योंकि उनका पता नहीं लगाया जा सका था। विजेंद्र ने इस बात को न मानते हुए फिर अपनी पत्नी को खोजने की कोशिशें शुरू कर दीं। फिर एक दिन जनवरी 27, 2015 को उत्तराखंड के गोंगली गांव के कुछ लोगें ने विजेंद्र को बताया कि एक महिला मानसिक रूप से अस्थिर हैं जो बिलकुल लीला जैसी दिखती हैं। जब वह वहां पहुंचे तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि खुशकिस्मती से वह महिला सचमुच विजेंद्र की पत्नी लीला ही थी। लेकिन अफसोस की बात यह थी कि इस त्रासदी से लीला के दिमाग पर बहुत गहरा आघात पंहुचा था और लीला की मानसिक स्थिति बिलकुल भी सही नहीं थी। लेकिन फिर भी विजेंद्र अपनी पत्नी को फिर से पाकर काफी खुश थे।