भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India movement) के शुरू होते ही गांधी, नेहरू, पटेल, आजाद समेत कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इस आंदोलन से अंग्रेजी हुकूमत इतना डर गई थी कि उसे कोई भी नेता जैसा दिखता वे उसे जेल में बंद कर देते थे। अंग्रेजों को लगता था कि वे ऐसा करके इस आंदोलन को बंद कर सकते हैं लेकिन हुआ ठिक इसका उल्टा। अंग्रेजों का ये कारनामा आग में घी का काम किया और आंदोलन ने और जोर पकड़ ली।
ये एक ऐसा आंदोलन था जिसमें पूरा देश शामिल हुआ। ये ऐसा आंदोलन था जिसने ब्रिटिश हुकूमत (British rule) की जड़ें हिलाकर रख दी थीं। ग्वालिया टैंक मैदान से गांधीजी के मुंह से निकले नारे ‘करो या मरो’ ने अंग्रेजी हुकूमत (English rule) की ईट से ईट हिला दी थी। बाद में ग्वालिया टैंक मैदान(Gwalia Tank Grounds) को अगस्त क्रांति मैदान और इस क्रांति को अगस्त क्रांति (August revolution) के नाम से जाना जाने लगा।
गांधी जी (Gandhiji) का करो या मरे नारा देश के हर एक शख्स के दिल में घर कर गया था। इस आंदोलन को तत्कालीन संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के पूर्वी हिस्से के आजमगढ़ जिले के जिलाधिकारी निबलेट की बात से समझा जा सकता है। निबलेट ने एक इंटरव्यू में इस क्रांति का जिक्र करते हुए बताया था कि जिले के एक थाने मधुबन ( जो अब मऊ में पड़ता है) में आंदोलन ने तहलका मचा दिया था। जबकि यहां कोई बड़े कद का नेता नहीं शामिल था।
निबलेट बताते हैं कि करीब एक हजार लोगों की भीड़ ने थाने को घेर रखा था। सभी लोगों के हाथों में मशालें और तलवारें थीं। जब उनको एक स्थानीय अधिकारी ने जानकारी दी वो मौके के लिए रवाना हुआ। मशालों और तलवारों को देखकर वो भयभीत हुआ। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि भीड़ की तरफ से ये आवाज गई कि वो लोग किसी ब्रिटानी अधिकारी को चोट नहीं पहुंचाना चाहते हैं वे गांधी बाबा के ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का पालन करते हुए भारत को आजाद करना चाहते हैं।