दिलरास बानो बेगम (Dilras Banu Begum)
यह नाम आपने शायद ही पहले कभी सुना होगा। दिलरास बानो बेगम मुग़ल के आख़िरी शहंशाह औरंगज़ेब की पहली बीवी थीं। इन्हें अपने मरणोपरांत ख़िताब राबिया उद्दौरानी के नाम से भी पहचानी जाती है। इनका का जन्म 1662 में हुआ, वो मिर्ज़ा बदीउद्दीन सफ़वी और नौरस बानो बेगम की बेटी थीं, इसके परिणामस्वरूप वे सफ़वी राजवंश की शहज़ादी थीं। 1637 में उनके विवाह शहज़ादे औरंगज़ेब से करवाया गया था। कहा जाता है कि इनकी पहले ही 5 संताने थी और साल 1657 में संभवतः जच्चा संक्रमण की वजह से उनकी मौत हो गई।
यह नाम आपने शायद ही पहले कभी सुना होगा। दिलरास बानो बेगम मुग़ल के आख़िरी शहंशाह औरंगज़ेब की पहली बीवी थीं। इन्हें अपने मरणोपरांत ख़िताब राबिया उद्दौरानी के नाम से भी पहचानी जाती है। इनका का जन्म 1662 में हुआ, वो मिर्ज़ा बदीउद्दीन सफ़वी और नौरस बानो बेगम की बेटी थीं, इसके परिणामस्वरूप वे सफ़वी राजवंश की शहज़ादी थीं। 1637 में उनके विवाह शहज़ादे औरंगज़ेब से करवाया गया था। कहा जाता है कि इनकी पहले ही 5 संताने थी और साल 1657 में संभवतः जच्चा संक्रमण की वजह से उनकी मौत हो गई।
मरियम उज जामनी (Mariam-uz-Zamani) इन्हें तो कोन नहीं जानता। मरियम जमानी आमेर के राजा भारमल कछवाहा की बेटी थी। इनका नाम जोधा बाई था। अकबर के साथ 1562 को सांभर, हिन्दुस्तान में इनका विवाह हुआ। वह अकबर की तीसरी पत्नी और उसके तीन प्रमुख मलिकाओं में से एक थी। अकबर के पहली मलिका रुक़ाइय्या बेगम निःसंतान थी और उसकी दूसरी पत्नी सलीमा सुल्तान उसके सबसे भरोसेमंद सिपहसालार बैरम ख़ान की विधवा थी।
लंबे इंतजार के बाद जब जोधा ने अकबर के बेटे सलीम को जन्म दिया, तो अकबर ने उन्हें मरियम जमानी का खिताब दिया, जिसका अर्थ होता है- विश्व के लिए दयालु। बाद में यही सलीम जहांगीर के नाम से जाना गया। यह जोड़ी इतिहास की सबसे कामयाब जोड़ी में से मानी गई है। परंतु एक राजपूती राजकुमारी का विवाह एक मुगल बादशाह से, इस बात का विरोध बहुत से लोगों ने किया।
जहांआरा बेगम (Jahanara Begum)
माना जाता है कि जहांआरा बेगम सम्राट शाहजहां और महारानी मुमताज महल की सबसे बड़ी बेटी थी। वह अपने पिता की उत्तराधिकारी और छठे मुगल सम्राट औरंगज़ेब की बड़ी बहन भी थी। आपको जानकर य़ह हैरानी होगी कि इन्होंने ही दिल्ली में चांदनी चौक की रूपरेखा बनाई थी। 1631 में मुमताज़ महल की असामयिक मृत्यु के बाद, 17 वर्षीय जहांआरा ने अपनी मां को मुग़ल साम्राज्य की फर्स्ट लेडी घोषित करवा दिया, इस तथ्य के बावजूद कि उनके पिता की तीन पत्नियां थीं। वह शाहजहां की पसंदीदा बेटी थी और उसने अपने पिता के शासनकाल में प्रमुख राजनीतिक प्रभाव को समाप्त कर दिया था। जिसके बाद उन्हें साम्राज्य की सबसे शक्तिशाली महिला के रूप में आज भी माना जाता है।
माना जाता है कि जहांआरा बेगम सम्राट शाहजहां और महारानी मुमताज महल की सबसे बड़ी बेटी थी। वह अपने पिता की उत्तराधिकारी और छठे मुगल सम्राट औरंगज़ेब की बड़ी बहन भी थी। आपको जानकर य़ह हैरानी होगी कि इन्होंने ही दिल्ली में चांदनी चौक की रूपरेखा बनाई थी। 1631 में मुमताज़ महल की असामयिक मृत्यु के बाद, 17 वर्षीय जहांआरा ने अपनी मां को मुग़ल साम्राज्य की फर्स्ट लेडी घोषित करवा दिया, इस तथ्य के बावजूद कि उनके पिता की तीन पत्नियां थीं। वह शाहजहां की पसंदीदा बेटी थी और उसने अपने पिता के शासनकाल में प्रमुख राजनीतिक प्रभाव को समाप्त कर दिया था। जिसके बाद उन्हें साम्राज्य की सबसे शक्तिशाली महिला के रूप में आज भी माना जाता है।
गुलबदन बानो बेग़म (Gulbadan Banu Begum) माना जाता है कि साल 1523 में गुलबदन का जन्म अफगानिस्तान के काबुल में हुआ। बचपन में ही उनके पिता ज़हीरुद्दीन बाबर का इन्तेकाल हो गया जिसके बाद उनकी सौतेली मां, माहम बेग़म ने उन्हें गोद ले लिया था। उन्हें बचपन से पढ़ने का बहुत शौक़ था और वे फ़ारसी और अपनी मातृभाषा तुर्की में कविताएं भी लिखा करती थीं। वे अपने भतीजे, राजकुमार अकबर के बहुत क़रीब थीं और उन्हें रोज़ कहानियां सुनाया करती थीं।
जब अकबर बादशाह बने तब उन्होंने गुलबदन को हुमायूं नामा लिखने का सुझाव दिया। कहा जाता है कि इस तरह मुग़ल साम्राज्य का इतिहास पहली बार एक औरत के नज़रिए से से पढा जा सकता हैं। अगर बात करे हुमायूं नामा की तो हुमायूं नामा में गुलबदन बेगम ने सिर्फ़ बादशाह हुमायूं और उनके शासन के बारे में ही नहीं बल्कि एक शाही परिवार की दिनचर्या का और मुगल जनानखाने के अंदर के जीवन का बखूबी वर्णन किया।
नूरजहां (Nur Jahan)
इस नाम से तो आप वाकिफ ही होंगे। या कहीं ना कहीं तो आपने य़ह नाम सुना ही होगा। 1611 ई में जहांगीर से शादी करने के बाद उन्हें 1613 में बादशाह बेगम बनाया गया। कहा जाता है कि वह बेहद खूबसूरत होने के साथ साथ बुद्धिमान भी थी। साथ ही वह शास्त्र कला में भी निपुण थी। कहा जाता है कि 1619 ई. में उसने एक ही गोली से शेर को मार गिराया था। इसके फलस्वरूप जहांगीर के शासन का समस्त भार उसी पर आ पड़ा था। इसके बाद उनके शासन मे बहुत ही विद्रोह रहा। जहांगीर के जीवन काल में नूरजहां सर्वशक्ति सम्पन्न रही, लेकिन 1627 ई. में जहांगीर की मृत्यु के उपरांत उसकी राजनीतिक प्रभुता नष्ट हो गई। इसके बाद नूरजहां की मृत्यु 1645 ई. में हुई।
इस नाम से तो आप वाकिफ ही होंगे। या कहीं ना कहीं तो आपने य़ह नाम सुना ही होगा। 1611 ई में जहांगीर से शादी करने के बाद उन्हें 1613 में बादशाह बेगम बनाया गया। कहा जाता है कि वह बेहद खूबसूरत होने के साथ साथ बुद्धिमान भी थी। साथ ही वह शास्त्र कला में भी निपुण थी। कहा जाता है कि 1619 ई. में उसने एक ही गोली से शेर को मार गिराया था। इसके फलस्वरूप जहांगीर के शासन का समस्त भार उसी पर आ पड़ा था। इसके बाद उनके शासन मे बहुत ही विद्रोह रहा। जहांगीर के जीवन काल में नूरजहां सर्वशक्ति सम्पन्न रही, लेकिन 1627 ई. में जहांगीर की मृत्यु के उपरांत उसकी राजनीतिक प्रभुता नष्ट हो गई। इसके बाद नूरजहां की मृत्यु 1645 ई. में हुई।