हम बात कर रहे हैं होसंगाबाद जिले के बनखेड़ी गरधा गांव के किसान मान सिंह गुर्जर की। एक तरफ जहां मूंग की खेती के लिए किसान नरवाई जलाकर खेतों को साफ करने में लगा हुआ है, वहीं दूसरी ओर मान सिंह गुर्जर अपने खेतों में फसल अवशेषों पर रोटावेटर चलाकर उसकी प्रासेसिंग में व्यस्त हैं।
जैविक खेती को अपनाने वाले किसान मान सिंह गुर्जर इस साल अपनी बारह एकड़ खेत में गेंहू बोए थे। फसल काटने के बाद उसके अवशेष का वह सदुपयोग करने में लगे हुए हैं। गुर्जर अपने खेतों में गेंहू की डंठलों को रोटावेटर चलवाकर मिट्टी में मिलवा रहे हैं।
‘पत्रिका’ से बातचीत में मान सिंह गुर्जर ने बताया कि वह खेतों में फसल अवशेष पर ही रोटावेटर चलवा देते हैं। खेत में फैले अवशेष को मिट्टी में मिलवाते हैं। थोड़ी पानी देने के बाद वह खेत में ही सड़कर जैविक खाद बन जाता है। वह बताते हैं कि पिछले दस साल से वह यही प्रक्र्रिया अपना रहे हैं। नरवाई में आग लगाकर जलाने से खेतों को भी नुकसान होता है। खेतों की उर्वरता धीरे धीरे समाप्त हो जाती है। जबकि फसल अवशेष को खेतों में ही मिला देने से खेतों को प्राकृतिक रूप से उर्वरक मिल जाता है। यही नहीं उपजाउ मिट्टी की परत को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।
गुर्जर बताते हैं कि पर्यावरण संरक्षण में कई प्रकार से यह विधि बेहद उपयोगी है। अव्वल यह कि इस विधि के अपनाने से खेतों की नमी बरकरार रहती है। फसल उपजाने के लिए सिंचाई के लिए पचास फीसदी पानी का खर्च कम हो जाता है।
वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी एसएस कौरव ने बताया कि खेतों में फसल अवशेष जलाने से खेतों में पाए जाने वाले सूक्ष्म पोषक तत्व भी जल जाते हैं। यह खेती और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसानदायक साबित होता है।