यहां हम बेनेडिक्ट कंबरबैच के जन्मदिन पर कुछ अनजाने पहलुओं के बारे में बता रहे हैं, जिसके बारे में उनके प्रशसंक भी शायद नहीं जानते होंगे-
– बेनेडिक्ट कंबरबैच को अपना नाम नहीं पसंद है क्योंकि उसका उच्चारण करना बेहद कठिन है।
– बेनेडिक्ट कंबरबैच की आंखों का रंग बदलता रहता है। वह हेटेरोक्रोमिया इरिडिस नामक एक बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी की वजह से आंखें कभी नीली और कभी हरी दिखाई देती है।
– बेनेडिक्ट कंबरबैच को अपना नाम नहीं पसंद है क्योंकि उसका उच्चारण करना बेहद कठिन है।
– बेनेडिक्ट कंबरबैच की आंखों का रंग बदलता रहता है। वह हेटेरोक्रोमिया इरिडिस नामक एक बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी की वजह से आंखें कभी नीली और कभी हरी दिखाई देती है।
– एक अभिनेता के तौर पर उनको अपने स्टिंट की पहचान सबसे पहली पहली बार प्राइमरी स्कूल में एक थियेटर कार्यक्रम के दौरान हुआ था। कंबरबैच याद करते हैं। उस वक्त उनमें धैर्य बिल्कुल नहीं था। उन्होंने एक्ट्रेस मैरी मंच से बाहर धकेल दिया क्योंकि वह स्टेज पर आने में बहुत अधिक समय ले रही थीं।
– कंबरबैच के माता-पिता भी अभिनेता हैं। वास्तव में, उनके असली माता-पिता, टिमोथी कार्लटन और वांडा वेंथम ने भी ‘शर्लक’ में उनके रील माता-पिता की भूमिका निभाई थी।
– कंबरबैच के माता-पिता भी अभिनेता हैं। वास्तव में, उनके असली माता-पिता, टिमोथी कार्लटन और वांडा वेंथम ने भी ‘शर्लक’ में उनके रील माता-पिता की भूमिका निभाई थी।
– कंबरबैच ने शर्लक होम्स की भूमिका नहीं मिलने वाली थी। मेकर्स को उनके नाक की साइज पसंद नहीं था। निर्माताओं का मानना था कि इस नाक की साइज के साथ वह सेक्सी बिल्कुल नहीं दिखते थे।
– ‘टू द एंड्स ऑफ द अर्थ’ की शूटिंग के दौरान दक्षिण अफ्रीका में कंबरबैच को किडनैप कर लिया गया था। उन्हें और उनके सह-कलाकारों को लूटा गया था और खुद के शूलेस से बांध दिया गया था।
– कंबरबैच एक साल तक अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे। ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने एक साल की छुट्टी ली और भारत के दार्जिलिंग के एक मठ में तिब्बती बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाया।
– ‘टू द एंड्स ऑफ द अर्थ’ की शूटिंग के दौरान दक्षिण अफ्रीका में कंबरबैच को किडनैप कर लिया गया था। उन्हें और उनके सह-कलाकारों को लूटा गया था और खुद के शूलेस से बांध दिया गया था।
– कंबरबैच एक साल तक अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे। ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने एक साल की छुट्टी ली और भारत के दार्जिलिंग के एक मठ में तिब्बती बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाया।